Latest Cotton News : कपास आयात शुल्क हटाने पर भड़के किसान, SKM ने बताया ‘किसान विरोधी फैसला’

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नई दिल्ली, 20 अगस्‍त (कृषि भूमि ब्यूरो):

केंद्र सरकार द्वारा कपास (Cotton) पर लगाए गए 11% आयात शुल्क और 5% कृषि अवसंरचना विकास शुल्क (AIDC) को हटाने के निर्णय पर संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। SKM ने इस कदम को “गंभीर रूप से किसान विरोधी” बताते हुए कहा है कि इससे घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में भारी गिरावट आएगी, जिससे देश के लाखों कपास उत्पादक किसान आर्थिक रूप से प्रभावित होंगे।

SKM के प्रवक्ता ने कहा, “सरकार का यह फैसला सीधे-सीधे बहुराष्ट्रीय आयातक कंपनियों के हित में है, न कि देश के अन्नदाताओं के। विदेशी कपास सस्ती दरों पर भारत आएगी, जिससे घरेलू कपास का मूल्य गिर जाएगा और किसान अपने उत्पादन की लागत भी नहीं निकाल पाएंगे।”

यह फैसला इसलिए विवादित है क्योंकि भारत के कई राज्य — जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना और पंजाब — कपास उत्पादन के मुख्य केंद्र हैं। यदि आयातित कपास सस्ती कीमत पर बाजार में उपलब्ध होगी, तो किसानों को अपनी फसल के लिए उचित मूल्य नहीं मिल पाएगा। कपास की खेती में उर्वरक, कीटनाशक और सिंचाई जैसी लागतें अधिक होती हैं। यदि बाजार में भाव गिरते हैं, तो किसान ऋण चुकाने में असमर्थ रहेंगे और कर्ज के दलदल में फंस सकते हैं। इसके अलावा कपास उद्योग से जुड़े गिनती, कताई और स्थानीय मंडियों पर भी इस निर्णय का असर होगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ सकती है।

केंद्र सरकार का तर्क है कि इस कदम से देश में वस्त्र उद्योग को कच्चे माल की आपूर्ति सस्ती दर पर मिल सकेगी, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और महंगाई पर नियंत्रण किया जा सकेगा। सरकार के अनुसार, यह नीति उपभोक्ताओं के हित में है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार से इस निर्णय को तुरंत वापस लेने की मांग की है और चेतावनी दी है कि अगर किसानों की बात नहीं सुनी गई, तो देशभर में आंदोलन तेज किया जाएगा।

SKM ने जोर देते हुए कहा”किसानों की अनदेखी कर सिर्फ उद्योगपतियों को लाभ देना देशहित नहीं है। हमें सस्ती आयातित कपास नहीं, बल्कि किसानों को उनकी मेहनत का पूरा मूल्य चाहिए।”

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कपास आयात शुल्क हटाने से तात्कालिक रूप से वस्त्र उद्योग को राहत मिल सकती है, लेकिन दीर्घकालीन रूप से यह निर्णय भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक सिद्ध हो सकता है। कपास जैसी नकदी फसलों में सरकारी नीतियां यदि संतुलन से न बनाई जाएं, तो यह किसानों के लिए संकट का कारण बन सकती हैं।

 

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