Agri News: एथेनॉल के उत्साह में तिलहन की बर्बादी: भारत की खाद्य तेल आत्मनिर्भरता पर खतरा

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मुंबई, 12 अगस्त (कृषि भूमि डेस्क):

भारत सरकार का एथेनॉल उत्पादन (Ethanol Production) को बढ़ावा देने का अभियान देश की खाद्य तेल (Edible Oil) आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को चुनौती दे सकता है। एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने गन्ने और मक्के जैसी फसलों पर जोर दिया है, लेकिन इससे तिलहन की खेती पर दबाव बन सकता है, जो खाद्य तेल की घरेलू जरूरतों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भारत में एथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने “एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम” को लागू किया है, जिसमें पेट्रोल में एथेनॉल का मिश्रण 20% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। इस नीति के तहत, गन्ने और मक्के जैसी फसलों को प्रमुख रूप से एथेनॉल उत्पादन के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। इससे देश में एथेनॉल का उत्पादन बढ़ेगा और पेट्रोलियम आयात पर निर्भरता में कमी आएगी।

लेकिन, एथेनॉल उत्पादन के लिए गन्ना और मक्का जैसी फसलों का उपयोग बढ़ने से तिलहन की खेती पर प्रतिकूल असर पड़ा है। तिलहन (जैसे सोयाबीन, मूँगफली, सरसों) की फसलें खाद्य तेल उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण होती हैं, और इनकी कमी खाद्य तेल आयात पर निर्भरता को बढ़ा सकती है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक देश है, और इसका अधिकांश हिस्सा मलेशिया, इंडोनेशिया और अर्जेंटीना से आता है। तिलहन की खेती में कमी और इसके बजाय गन्ने और मक्के जैसी फसलों की ओर झुकाव भारत के खाद्य तेल आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के लिए खतरे का संकेत है।

वर्तमान में, भारत के कृषि क्षेत्र में तिलहन की बुवाई में कमी आ रही है, जबकि खाद्य तेल की घरेलू मांग लगातार बढ़ रही है। इसके परिणामस्वरूप, खाद्य तेल आयात में वृद्धि हो सकती है, जो न केवल कृषि क्षेत्र के लिए चुनौतीपूर्ण होगा, बल्कि यह देश के आर्थिक संतुलन पर भी प्रभाव डाल सकता है।

यह स्थिति भारत सरकार के लिए एक कठिन चुनौती पेश कर रही है। जहां एक ओर एथेनॉल उत्पादन बढ़ाकर ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर खाद्य तेल आत्मनिर्भरता के प्रयासों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सही दिशा में नीति बनाने की प्रक्रिया जारी रहती है, तो दोनों लक्ष्य – ऊर्जा आत्मनिर्भरता और खाद्य तेल आत्मनिर्भरता – एक साथ प्राप्त किए जा सकते हैं।

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि सरकार को इस विषय पर ध्यान केंद्रित करते हुए, एथेनॉल (Ethanol) और तिलहन (Oilseeds) की फसलों के उत्पादन को संतुलित करने के लिए बेहतर नीति लानी चाहिए। साथ ही, कृषि क्षेत्र में नवाचार और तकनीकी सुधार की आवश्यकता है, ताकि कम जगह में अधिक उत्पादन किया जा सके।

भारत (India) का एथेनॉल अभियान निश्चित रूप से ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है, लेकिन इसे खाद्य तेल आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के साथ संतुलित करना आवश्यक होगा। गन्ने और मक्के की खेती को बढ़ावा देने के साथ-साथ तिलहन की खेती को भी प्राथमिकता देनी होगी, ताकि दोनों क्षेत्रों में संतुलन बना रहे और देश को आयातित खाद्य तेल पर निर्भरता कम हो। इस दिशा में सरकार और कृषि विभाग को एक सशक्त और समग्र रणनीति की आवश्यकता है।

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