नई दिल्ली, 3 नवंबर (कृषि भूमि बिज़नेस डेस्क): भारत से अमेरिका को होने वाला निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ है। ट्रंप प्रशासन के 50% टैरिफ फैसले के बाद भारत के अमेरिकी बाजार में निर्यात में 37.5% की भारी गिरावट दर्ज की गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट केवल अस्थायी झटका नहीं, बल्कि आने वाले महीनों में भारत की निर्यात नीति और विदेशी व्यापार पर गहरा असर डाल सकती है।
टैरिफ के बाद आंकड़े बयां कर रहे हैं निर्यात की गिरावट
निर्यात आंकड़े इस बात का स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की मांग में भारी कमी आई है।
- मई 2025 में भारत से अमेरिका को निर्यात 8.8 बिलियन डॉलर था, जो सितंबर में घटकर 5.5 बिलियन डॉलर रह गया।
- शून्य टैरिफ उत्पादों (Zero-Tariff Items) में 47% की गिरावट दर्ज की गई।
- स्मार्टफोन निर्यात 61% घट गया — 2.29 बिलियन डॉलर से 884.6 मिलियन डॉलर पर आ गया।
- फार्मास्युटिकल्स (Pharma) में 15.7% की गिरावट — 745.6 मिलियन से घटकर 628.3 मिलियन डॉलर।
- रत्न और आभूषण उद्योग में 59% की कमी, जबकि सोलर पैनल निर्यात में 60.8% गिरावट आई।
टैरिफ का असर क्यों इतना गहरा पड़ा?
विश्लेषकों के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन ने अप्रैल 2025 में भारत पर 10% टैरिफ लगाया था, जिसे अगस्त तक चरणबद्ध तरीके से बढ़ाकर 50% कर दिया गया। इस नीति का उद्देश्य भारत के रूस से कच्चे तेल आयात और चीन के साथ बढ़ते व्यापारिक संबंधों पर दबाव बनाना था। हालांकि, इसका सीधा असर भारतीय निर्यातकों पर पड़ा है, जो अब अमेरिकी बाजार में लागत और मूल्य प्रतिस्पर्धा दोनों में पिछड़ गए हैं।
एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के अनुसार, “भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा सेक्टर पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है क्योंकि इन उत्पादों की अमेरिका में भारी मांग थी। अब वहां वियतनाम और मेक्सिको जैसे देश मार्केट शेयर हासिल कर रहे हैं।”
कौन से सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं?
| सेक्टर | गिरावट (%) | असर |
|---|---|---|
| स्मार्टफोन | 61% | Apple और Samsung की सप्लाई चेन में बदलाव से सीधा असर |
| फार्मा | 15.7% | अमेरिकी FDA नियमों और टैरिफ दोनों से दबाव |
| रत्न-ज्वेलरी | 59% | लक्जरी मार्केट में मांग घटने और डॉलर स्ट्रेंथ का प्रभाव |
| सोलर पैनल | 60.8% | ग्रीन एनर्जी उपकरणों पर उच्च कर |
| टेक्सटाइल | 32% | श्रम-गहन उद्योगों पर आयात शुल्क का भार |
निर्यातकों और उद्योग के लिए खतरे की घंटी
विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट भारत के रोजगार, विदेशी मुद्रा आय और व्यापार संतुलन पर सीधा प्रभाव डाल सकती है। कई MSME निर्यात इकाइयों ने बताया कि वे नए ऑर्डर पाने में संघर्ष कर रही हैं और कुछ कंपनियों को अपने उत्पादन घटाने पड़े हैं। उद्योग सूत्रों के मुताबिक, “अगर टैरिफ नीति जारी रही, तो 2026 तक भारत का अमेरिका को निर्यात 20% और घट सकता है।”
वैश्विक प्रभाव और प्रतिस्पर्धी देशों का फायदा
भारत की जगह अमेरिका अब वियतनाम, थाईलैंड और बांग्लादेश से उत्पाद मंगवाने लगा है। ये देश अमेरिकी व्यापार नीतियों के अनुरूप जल्दी समायोजित हो गए हैं, जिससे उन्हें मार्केट शेयर हासिल हो रहा है। भारतीय उद्योग जगत अब FTA (Free Trade Agreement) की दिशा में अमेरिका से नये सिरे से बातचीत की मांग कर रहा है।
समाधान क्या है?
– निर्यात बाजारों का विविधीकरण — यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में नए अवसर तलाशने होंगे।
– सरकारी प्रोत्साहन — निर्यातकों को टैक्स छूट, लॉजिस्टिक सब्सिडी और कर्ज में राहत दी जाए।
– कूटनीतिक वार्ता — अमेरिका के साथ व्यापारिक टकराव कम करने के लिए उच्च-स्तरीय वार्ता जरूरी है।
– तकनीकी नवाचार और मूल्यवर्धन — भारतीय उत्पादों को प्रीमियम ब्रांड वैल्यू दिलाने पर फोकस।
आर्थिक रणनीति पर फिर से सोचने का समय
ट्रंप की टैरिफ नीति ने भारत के लिए एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारत का निर्यात बहुत अधिक अमेरिका पर निर्भर है? अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स, जेम्स-ज्वेलरी और फार्मा सेक्टर में रोजगार संकट और निर्यात घाटा दोनों गहराने की आशंका है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब दीर्घकालिक रणनीति और आत्मनिर्भर निर्यात नीति पर काम करना होगा, ताकि इस तरह के झटकों से अर्थव्यवस्था को बचाया जा सके।
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