Kashmir Saffron Crisis: कश्मीर में केसर के खेतों पर संकट के बादल, पम्पोर में घटती उपज ने किसानों को किया चिंतित

श्रीनगर, 21 नवम्बर, 2025 (कृषि भूमि डेस्क): जम्मू और कश्मीर का पम्पोर क्षेत्र, जिसे दुनिया भर में केसर नगर‘ (Saffron Town) के नाम से जाना जाता है, अपनी बेहतरीन गुणवत्ता वाली केसर के लिए प्रसिद्ध है। यह बहुमूल्य मसाला न केवल कश्मीर की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि यहाँ की हजारों किसान परिवारों की आजीविका का भी आधार है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से केसर की पैदावार में लगातार आ रही गिरावट ने यहाँ के किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं।

एक समय में प्रति कनाल 50 तोला (लगभग 600 ग्राम) तक उत्पादन देने वाले इस क्षेत्र में अब पैदावार बहुत कम हो गई है। केसर के उत्पादन में इस अभूतपूर्व गिरावट के पीछे कई जटिल कारण जिम्मेदार हैं।

केसर उत्पादन में गिरावट के मुख्य कारण

पम्पोर में केसर की खेती का रकबा 1990 के दशक के 5,700 हेक्टेयर से घटकर अब लगभग 3,700 हेक्टेयर रह गया है। यह गिरावट मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों के कारण हुई है:

1. जलवायु परिवर्तन और अपर्याप्त वर्षा

केसर की खेती के लिए मौसम का सही संतुलन बहुत महत्वपूर्ण है।

  • सूखा और अनियमित वर्षा: केसर की बुआई के बाद और फूल खिलने से पहले (विशेषकर सितंबर-अक्टूबर में) हल्की और समय पर बारिश आवश्यक होती है। पिछले कुछ वर्षों में अनियमित वर्षा पैटर्न और लंबे समय तक सूखे ने कंदों (Corms) को सही आकार लेने से रोक दिया है, जिससे फूलों की संख्या और गुणवत्ता दोनों में भारी कमी आई है।

  • तापमान में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में हो रही वृद्धि भी केसर के अनुकूल ठंडी जलवायु को प्रभावित कर रही है।

2. सिंचाई सुविधाओं का अभाव और प्रबंधन की कमी

  • परंपरागत रूप से वर्षा-सिंचित खेती: कश्मीर में केसर की खेती पारंपरिक रूप से वर्षा-सिंचित (Rain-fed) रही है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के दौर में अब सिंचाई की आवश्यकता बढ़ गई है।

  • राष्ट्रीय केसर मिशन का सीमित प्रभाव: केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय केसर मिशन (National Saffron Mission) के तहत स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों और बोरवेल को स्थापित करने के लिए फंड दिया, लेकिन कई क्षेत्रों में ये प्रणालियाँ पूरी तरह से लागू नहीं हो पाईं या रखरखाव की कमी के कारण निष्क्रिय हो गईं। किसान अक्सर इन सुविधाओं के अतिक्रमण और अनुचित रखरखाव की शिकायत करते हैं।

3. भूमि उपयोग में परिवर्तन और प्रदूषण

  • खेतों का सिकुड़ना: तेजी से शहरीकरण और आवासीय तथा वाणिज्यिक निर्माण के लिए केसर के खेतों को परिवर्तित किया जा रहा है, जिससे खेती का रकबा लगातार सिकुड़ रहा है।

  • सीमेंट कारखानों की धूल: पुलवामा के पास केसर के खेतों के नजदीक स्थित सीमेंट कारखानों से निकलने वाली भारी मात्रा में धूल (Dust) केसर के पौधों पर जम जाती है। यह धूल पत्तियों के स्टोमेटा (Stomata) को अवरुद्ध कर देती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण बाधित होता है और केसर के रंग (Crocin) और गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ता है। पिछले 20 वर्षों में सीमेंट प्रदूषण के कारण 60% तक गिरावट देखी गई है।

4. कंदों (Corms) की तस्करी और गुणवत्ता में गिरावट

  • कंदों की तस्करी: केसर की खेती का आधार उसके भूमिगत कंद (Corms) होते हैं। बुवाई के मौसम से पहले इन उच्च गुणवत्ता वाले कंदों की अवैध निकासी और तस्करी एक गंभीर मुद्दा बन गई है। इससे स्थानीय किसानों के पास अच्छे कंदों की कमी हो जाती है, जो अगली फसल की नींव को कमजोर करता है।

  • मिट्टी की उर्वरता: कुछ क्षेत्रों में मिट्टी की उर्वरता (Soil Fertility) और स्वास्थ्य में कमी भी उत्पादकता को प्रभावित कर रही है, क्योंकि किसानों द्वारा उचित अंतराल पर खेतों की पुनर्रोपाई (Replantation) नहीं की जा रही है।

केसर को बचाने के लिए उठाए गए कदम

इन चुनौतियों के बावजूद, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और केंद्र सरकार इस ‘सुनहरी फसल’ को पुनर्जीवित करने के लिए कई प्रयास कर रही है:

  • राष्ट्रीय केसर मिशन (NMS): इस मिशन का उद्देश्य न केवल सिंचाई सुविधाओं को मजबूत करना है, बल्कि किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकें और गुणवत्तापूर्ण बीज कंद उपलब्ध कराना भी है।

  • सिंचाई परियोजनाओं पर जोर: सरकार ने लंबित 124 सामुदायिक बोरवेल परियोजनाओं को पूरा करने की योजना पर जोर दिया है, ताकि लगभग 3,665 हेक्टेयर केसर भूमि को सिंचाई का लाभ मिल सके।

  • GI टैग का लाभ: कश्मीरी केसर को मिला भौगोलिक संकेत (GI Tag) इसकी शुद्धता और गुणवत्ता की गारंटी देता है। यह टैग उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेहतर कीमत दिलाने और नकली केसर की बिक्री को रोकने में मदद करता है।

  • इनडोर खेती पर शोध: कृषि विशेषज्ञ, जैसे शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय (SKUAST-K) के वैज्ञानिक, जलवायु-नियंत्रित वातावरण में इनडोर केसर खेती (Indoor Saffron Farming) पर शोध कर रहे हैं। यह तरीका जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दरकिनार कर एक स्थिर उपज सुनिश्चित कर सकता है।

  • फसल बीमा योजना: बागवानी क्षेत्र को सहारा देने के लिए सरकार ने सेब, केसर और आम जैसी महत्वपूर्ण फसलों के लिए फसल बीमा योजना को मंजूरी दी है, जिससे किसानों को विपरीत मौसम की स्थिति में वित्तीय सुरक्षा मिल सके।

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