Agriculture News : कृषि क्षेत्र में बढ़ती लोन डिफ़ॉल्ट: पहली तिमाही में कई बैंकों का NPA 10% तक पहुंचा

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एनपीए में तेज़ बढ़ोतरी से बैंकों का कृषि पोर्टफोलियो दबाव में, कृषि ऋण की सुस्त मांग भी चिंता का विषय

नई दिल्ली, जुलाई 28 (कृषि भूमि डेस्क): वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में देश के कई बैंकों के कृषि ऋण में चूक बढ़ गई है। कुछ बैंकों का कृषि क्षेत्र में गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) अनुपात दो अंकों में पहुंच गया है, जो बैंकों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है। जानकारों का मानना है कि कृषि क्षेत्र में ऋण वसूली की चुनौतियां और सीमांत किसानों की आर्थिक स्थिति इसकी प्रमुख वजहें हैं।

बढ़ती एनपीए दर और धीमी ऋण वृद्धि

बैंक ऑफ महाराष्ट्र का उदाहरण देखें तो इसका कृषि ऋण एनपीए जून 2024 में बढ़कर ₹3,166 करोड़ पर पहुंच गया, जो इसके कुल कृषि ऋण (Agricultural Loan) का 9.65% है। जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह आंकड़ा ₹2,512 करोड़ था। इस दौरान बैंक का कृषि ऋण केवल 3% बढ़ा है, और तिमाही आधार पर इसमें गिरावट आई है।

यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब ऐंड सिंध बैंक और यूको बैंक जैसे सरकारी बैंकों ने भी इस तिमाही में कृषि एनपीए में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। यूको बैंक का कृषि एनपीए 10.81% पर बना हुआ है, हालांकि इसमें साल दर साल थोड़ी गिरावट देखी गई है।

आरबीआई (RBI) के आंकड़े और रिपोर्ट

भारतीय रिज़र्व बैंक की *ट्रेंड एंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन इंडिया* रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2024 के अंत तक कृषि क्षेत्र का सकल एनपीए अनुपात 6.2% था। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों में सबसे अधिक चूक कृषि क्षेत्र में ही रही, जिससे मार्च 2024 में इन क्षेत्रों का एनपीए हिस्सा बढ़कर 57.3% हो गया, जो मार्च 2023 में 51.1% था।

प्राथमिकता ऋण नीति पर सवाल

विशेषज्ञों का कहना है कि प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र में कृषि ऋण (Agricultural Loan) का बड़ा हिस्सा होता है, जिससे बैंकों पर ऋण वितरण का दबाव रहता है। खासकर छोटे और सीमांत किसानों को दिए जाने वाले ऋण अधिक जोखिम वाले होते हैं, क्योंकि उनकी आय अनिश्चित होती है और प्राकृतिक आपदाओं या बाजार की अस्थिरता का असर सबसे पहले इन्हीं पर पड़ता है। साथ ही, कृषि ऋणों को वसूलना और कानूनी रूप से राइट-ऑफ करना कठिन होता है।

निजी बैंक भी अछूते नहीं

निजी क्षेत्र के HDFC बैंक ने भी कृषि ऋण में बड़ी चूक की जानकारी दी है। बैंक का एनपीए इस क्षेत्र में ₹2,200 करोड़ तक पहुंच गया है, जो इसकी उच्चतम स्तर की चूक में से एक है।

कृषि ऋण की मांग में भी गिरावट

इस तिमाही में कुछ बैंकों के कृषि ऋण पोर्टफोलियो में वृद्धि बेहद सीमित रही है। केनरा बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और पंजाब ऐंड सिंध बैंक के कृषि ऋण में केवल 3% की वृद्धि हुई है, जबकि यूनियन बैंक ने इस क्षेत्र में 9% की गिरावट दर्ज की है। यह संकेत करता है कि किसानों के बीच ऋण की मांग भी कमजोर पड़ी है, जो मौजूदा कृषि अर्थव्यवस्था की जटिलताओं को उजागर करता है।

एक्सपर्ट की राय

कृषि भूमि की टीम से बात करते हुए सीनियर बिज़नेस जर्नलिस्ट नीरज राय ने बताया, ‘कृषि क्षेत्र में बढ़ता एनपीए संकट बैंकों के लिए चेतावनी का संकेत है। जहां एक ओर सरकार किसानों की आय बढ़ाने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर सीमांत किसानों की ऋण चुकाने की क्षमता कमजोर होती जा रही है। आने वाले समय में यदि ऋण वसूली के उपायों और कृषि उत्पादकता में सुधार नहीं हुआ, तो बैंकों का कृषि पोर्टफोलियो और अधिक दबाव में आ सकता है।’

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