Pearl Farming: असम में मोती खेती की सफलता झारखंड के किसानों को दे रही नई दिशा, महिलाओं की बढ़ी भागीदारी

रांची, 06 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): असम में मोती की खेती (Pearl Farming) की सफलता अब झारखंड के किसानों—विशेष रूप से महिलाओं—के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है। झारखंड के कई किसान और महिला उद्यमी इन दिनों असम में आधुनिक पर्ल फार्मिंग की तकनीक सीखने के लिए विशेष प्रशिक्षण ले रहे हैं। यह ट्रेनिंग गुवाहाटी स्थित कॉटन यूनिवर्सिटी दे रही है, जहाँ ज़ूलॉजी विशेषज्ञ किसानों को कमर्शियल स्तर पर मोती उत्पादन के लिए आवश्यक तकनीक और वैज्ञानिक तरीके सिखा रहे हैं।

असम फिशरीज़ डिपार्टमेंट ने प्रशिक्षण के लिए दिघालीपुखुरी तालाब को अभ्यास स्थल के रूप में उपलब्ध कराया है। उद्देश्य यह है कि झारखंड लौटने पर ये किसान अपने गाँवों में मोती की खेती को नए स्रोत के रूप में विकसित कर सकें, जहाँ इस समय इसकी भारी मांग बन रही है।

असम का मॉडल: झारखंड के लिए उदाहरण

असम में पिछले कुछ वर्षों में नागांव और मोरीगांव जिलों में मोती की खेती तेजी से विकसित हुई है। यहां के किसानों ने कम लागत में बड़े मुनाफे का मॉडल तैयार किया, जिससे देश के अन्य राज्यों में भी इस तकनीक के प्रति रुचि बढ़ी है।

असम के ज्वेलरी सेक्टर में स्थानीय मोतियों का उत्पादन कम होने के कारण यहां अक्सर हैदराबाद, राजस्थान और मुंबई से मोती मंगाए जाते हैं। यह गैप बताता है कि मोती की खेती में बड़ा बाजार अवसर मौजूद है।

कॉटन यूनिवर्सिटी का आधुनिक प्रशिक्षण मॉडल

कॉटन यूनिवर्सिटी ने 2017 में फ्रेशवॉटर पर्ल फार्मिंग की ट्रेनिंग शुरू की थी। तब से अब तक 3,500 से अधिक किसानों और उद्यमियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। ट्रेनिंग की लोकप्रियता बढ़ने के बाद झारखंड सरकार ने यूनिवर्सिटी के साथ समझौता किया।

अब झारखंड फिशरीज़ डिपार्टमेंट की पहल पर राज्य के 100 से अधिक किसान प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस कार्यक्रम का पहला चरण पूरा हो चुका है, जिसमें 25 किसानों को प्रशिक्षित किया गया। दूसरा चरण 21 से 24 नवंबर के बीच आयोजित होगा। कुल मिलाकर यह प्रशिक्षण कई चरणों में पूरा होगा।

यूनिवर्सिटी सूत्रों के मुताबिक, यह प्रशिक्षण पूरी तरह वैज्ञानिक तकनीकों पर आधारित है, जिसमें गोल और डिजाइनर मोती बनाने की सर्जिकल प्रक्रिया सिखाई जाती है। यह तकनीक इतनी आसान कर दी गई है कि सीमित शिक्षा वाले किसान भी इसे सीख कर सफल उद्यमी बन रहे हैं।

महिला उद्यमियों का उत्साह

रांची की महिला उद्यमी बृताती मिश्रा ने ट्रेनिंग के बाद कहा कि मोती की खेती महिलाओं के लिए एक बड़ा अवसर है। वे कहती हैं कि परिवार की जिम्मेदारियों के बाद भी महिलाएँ इस व्यवसाय को छोटे स्तर पर शुरू कर आसानी से अच्छा मुनाफा कमा सकती हैं।

झारखंड के 100 किसानों में बड़ी संख्या में महिलाएँ शामिल हैं, और राज्य सरकार ने इनके लिए एक पर्ल फार्मिंग क्लस्टर भी बनाया है, ताकि वे मिलकर बड़े स्तर पर उत्पादन कर सकें।

मोती खेती में मुनाफा: असम के किसान कमा रहे 23 लाख रुपये सालाना

कॉटन यूनिवर्सिटी के प्रशिक्षित असम के कई मोती किसानों ने 23 लाख रुपये तक का सालाना टर्नओवर हासिल किया है। यह आंकड़ा बताता है कि पर्ल फार्मिंग ग्रामीण युवाओं, किसानों और महिलाओं के लिए एक उच्च-लाभकारी अवसर बन सकता है।

यूनिवर्सिटी का मानना है कि भारत में अभी इस सेक्टर का पूरा उपयोग नहीं हुआ है और आने वाले वर्षों में इसका बड़ा आर्थिक मूल्य सामने आ सकता है।

ट्रेनिंग कैसे होती है?

ट्रेनिंग प्रक्रिया मीठे पानी में रहने वाले मसल्स (स्थानीय नाम: शामुक) को इकट्ठा करने से शुरू होती है। इन्हें अनुकूल वातावरण में कुछ समय रखा जाता है और फिर सर्जिकल प्रक्रिया द्वारा मोती विकसित करने की प्रक्रिया शुरू की जाती है। करीब दो वर्षों में उच्च गुणवत्ता वाले मोती तैयार हो जाते हैं। दिघालीपुखुरी तालाब में किसानों को हाथों-हाथ प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि वे वास्तविक स्थिति में पूरी प्रक्रिया का अनुभव कर सकें।

कुलमिलाकर, असम की पर्ल फार्मिंग तकनीक अब झारखंड के लिए एक नए भविष्य का द्वार खोल रही है। यह न सिर्फ कृषि-आधारित आय को मजबूत करेगी बल्कि महिलाओं और युवाओं के लिए उद्यमिता का एक स्थायी और लाभकारी मॉडल भी बना सकती है।

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