हरिद्वार, 31 अक्टूबर (कृषि भूमि ब्यूरो): सतत कृषि और मृदा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए पतंजलि ऑर्गेनिक्स अनुसंधान संस्थान ने आयुष मंत्रालय, आईएआरआई (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) और नाबार्ड के सहयोग से 28 अक्टूबर को दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। ‘स्वस्थ धारा’ पहल के अंतर्गत आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य था – मृदा स्वास्थ्य निगरानी और प्रबंधन के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाले औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहित करना।

कार्यशाला का आयोजन पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार में किया गया, जिसमें देशभर के कृषि वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और प्रौद्योगिकीविदों ने भाग लिया।

सतत कृषि और मृदा स्वास्थ्य पर जोर
इस कार्यशाला में विशेषज्ञों ने आधुनिक मृदा प्रबंधन तकनीकों, फसल चक्र, मृदा परीक्षण और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (INM) जैसे विषयों पर चर्चा की। सभी वक्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा और सतत उत्पादकता के लिए स्वस्थ मृदा का संरक्षण आवश्यक है।

आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि रसायन-प्रधान खेती ने मृदा के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ा है। उन्होंने बताया कि भारत में केवल 10% खाद्य प्रसंस्करण प्राकृतिक है और पतंजलि आंवला, एलोवेरा, अनाज और हर्बल अर्क जैसे उत्पादों के माध्यम से प्राकृतिक खेती और जैविक उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने कहा — “प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और औषधीय पौधों की खेती भारत के भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।”

आईएआरआई के उप महानिदेशक डॉ. राजबीर सिंह ने कहा कि हर्बल खेती से न केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि पलायन भी रुकेगा। डॉ. प्रदीप रमैया, डॉ. संजय श्रीवास्तव और अन्य विशेषज्ञों ने मृदा उर्वरता बढ़ाने, सटीक कृषि तकनीकों और कृषि में डिजिटलीकरण पर अपने विचार साझा किए।

कार्यशाला में पतंजलि हर्बल उद्यानों और अनुसंधान केंद्रों में व्यावहारिक प्रदर्शन भी किया गया, जहां किसानों को सिखाया गया कि पौधे कैसे कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित करते हैं, जिससे बेहतर उपज प्राप्त होती है।

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