मुंबई, 13 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): देश में प्याज की कीमत एक बार फिर सुर्खियों में है। स्थिति इतनी उलझी हुई है कि बंपर सप्लाई होने के बावजूद न तो किसानों को उचित दाम मिल रहा है और न ही ग्राहकों को रिलीफ। अभी रिटेल बाजार में प्याज 33 से 40 रुपये प्रति किलो बिक रहा है, जबकि किसान मंडी में इसे 12 से 20 रुपये प्रति किलो पर बेचने को मजबूर हैं। इसका मतलब है कि खेत से उपभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते तीन गुना तक फर्क आ रहा है।
भारत में हर महीने 8 से 12 लाख टन प्याज की खपत होती है। पिछले साल बंपर क्रॉप के चलते किसानों ने प्याज को स्टोर कर रखा था, उम्मीद थी कि बाजार में बढ़ती मांग के साथ उन्हें अच्छी कीमत मिलेगी। लेकिन बेमौसम बरसात ने महाराष्ट्र और गुजरात जैसी बड़े उत्पादन वाले राज्यों में प्याज की नई फसल को भारी नुकसान पहुंचाया। वहीं पिछले साल का स्टोर किया हुआ प्याज अब खराब होने के कगार पर है, जिससे किसान जल्दी से जल्द अपना स्टॉक निकालने को मजबूर हैं।
सरकार ने पिछले वर्ष NAFED और NCCF के माध्यम से 3 लाख टन प्याज खरीदा था, लेकिन यह स्टॉक बाजार में प्रभावी तरीके से रिलीज़ नहीं हुआ। इसके चलते सप्लाई चेन में समय रहते संतुलन नहीं आ पाया। कई एक्सपर्ट मानते हैं कि सरकारी खरीद के बावजूद रिटेल बाजार में कीमतों पर इसका असर सीमित रहा।
सबसे बड़ी चिंता का विषय है बिचौलियों का दबदबा। खेत से मंडी और मंडी से रिटेल तक प्याज की सप्लाई चेन बड़े व्यापारियों और कमीशन एजेंटों के नियंत्रण में रहती है। इसी कारण किसानों को न्यूनतम दाम मिलता है, जबकि ग्राहक को ऊंचा दाम चुकाना पड़ता है। सप्लाई भले ही बंपर हो, लेकिन असंतुलित वितरण और बिचौलियों की पकड़ कीमतों में कृत्रिम बढ़ोतरी पैदा कर देती है।
विशेषज्ञों के अनुसार दिसंबर में प्याज की कीमतें और बढ़ सकती हैं, क्योंकि पुराना स्टॉक तेजी से खत्म हो रहा है और नई फसल का आगमन देरी से होगा। यदि मौसम सामान्य रहा तो कीमतें स्थिर हो सकती हैं, अन्यथा रिटेल बाजार में 50 रुपये किलो तक पहुंचने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
कुल मिलाकर प्याज इस समय किसान और उपभोक्ता दोनों को रुला रहा है—किसान को लागत भी नहीं मिल रही, जबकि ग्राहक को महंगा प्याज खरीदना पड़ रहा है। असली समाधान तभी मिलेगा जब सप्लाई चेन पारदर्शी बने, किसानों को सीधे बाजार तक पहुंच मिले और बिचौलियों की भूमिका कम हो।
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