नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (कृषि भूमि ब्यूरो): भारत के खेतों में हर सुबह उगते सूरज के साथ सिर्फ फसलें नहीं, बल्कि अनगिनत उम्मीदें भी जन्म लेती हैं। उन उम्मीदों को सींचने वाले हाथों में केवल पुरुष नहीं, बल्कि महिलाएँ भी हैं, जिनकी मेहनत, लगन और संवेदनशीलता से भारतीय कृषि को नई दिशा मिली है। इन्हीं महिलाओं के योगदान को सम्मान देने के लिए हर साल 15 अक्टूबर को “राष्ट्रीय महिला किसान दिवस” मनाया जाता है।
खेतों की असली साथी
गांव की सुबह का दृश्य सोचिए — धूप की पहली किरण के साथ ही महिला किसान अपने खेत में पहुँच जाती है। हाथों में दरांती, चेहरे पर मुस्कान, और मन में फसल की चिंता। वह बीज बोती है, पौधों को पानी देती है और घर लौटकर परिवार का भी ख्याल रखती है।
लाखों महिलाएँ आज भारत के कृषि क्षेत्र की रीढ़ हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश के कृषि कार्यबल का लगभग 60% हिस्सा महिलाएँ हैं, फिर भी उन्हें “किसान” कहकर पहचान बहुत कम मिलती है।
महिला किसानों का बढ़ता योगदान
महिलाएँ आज सिर्फ खेती नहीं कर रहीं, बल्कि जैविक कृषि, बीज संरक्षण, पशुपालन, मधुमक्खी पालन और एग्रीकल्चरल इनोवेशन में भी बड़ी भूमिका निभा रही हैं।
बिहार के गया की महिला किसान सुरभि कुमारी ने ड्रैगन फ्रूट की खेती कर एक मिसाल कायम की है। राजस्थान की रमा देवी ने अपने गाँव में जैविक खेती की शुरुआत की और अब वह 40 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुकी हैं। तमिलनाडु की मीनाक्षी ने मिलेट उत्पादन को बढ़ावा देकर स्थानीय बाजार में अपनी ब्रांड पहचान बनाई।
सरकारी पहल और मान्यता
कृषि मंत्रालय ने 2016 में महिला किसानों के योगदान को औपचारिक मान्यता देने के लिए 15 अक्टूबर को “राष्ट्रीय महिला किसान दिवस” घोषित किया। इस दिन देशभर में संगोष्ठियाँ, प्रशिक्षण कार्यक्रम और पुरस्कार समारोह आयोजित किए जाते हैं, ताकि ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिल सके। “महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना” जैसी योजनाएँ महिलाओं को तकनीकी ज्ञान, ऋण सुविधा और बाजार पहुंच प्रदान कर रही हैं।
बदलता नजरिया, बढ़ता आत्मविश्वास
अब महिलाएँ खेत की सीमाओं से आगे बढ़कर कृषि निर्णयों में भागीदारी निभा रही हैं। वे मिट्टी की सेहत समझती हैं, मौसम के बदलावों से जूझती हैं, और फसल चक्र का प्रबंधन भी करती हैं। कई गाँवों में “महिला किसान समूह” बने हैं जो सामूहिक खेती कर रहे हैं और लाभ साझा कर रहे हैं।
राष्ट्रीय महिला किसान दिवस हमें याद दिलाता है कि खेती सिर्फ पुरुषों का क्षेत्र नहीं, बल्कि यह उन महिलाओं का भी संसार है जो अपने पसीने से धरती को हरियाली देती हैं। आज जरूरत है कि समाज और नीति-निर्माता महिला किसानों को समान पहचान और अवसर दें। क्योंकि जब महिला किसान सशक्त होगी, तभी भारत का खेत और भविष्य दोनों समृद्ध होंगे।
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