मुंबई, 27 नवम्बर, 2025 (कृषि भूमि डेस्क): केसर (Saffron) एक ऐसी मसाला फसल है, जिसकी खेती पारंपरिक रूप से केवल जम्मू और कश्मीर की कुछ खास जगहों तक ही सीमित मानी जाती है। लेकिन अब, महाराष्ट्र के औरंगाबाद की एक युवा महिला उद्यमी प्रिया अग्रवाल ने इस धारणा को बदल दिया है। उन्होंने अपनी सूझबूझ और आधुनिक तकनीक के दम पर, आर्टिफिशियल सैफरन फार्मिंग (Artificial Saffron Farming) के जरिए, महाराष्ट्र के गर्म और शुष्क मौसम में भी केसर की खेती में सफलता हासिल की है।
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प्रिया अग्रवाल की यह सफलता की कहानी न केवल महाराष्ट्र के किसानों के लिए एक नया रास्ता खोलती है, बल्कि उन युवाओं के लिए भी प्रेरणा है जो खेती में नवाचार (Innovation) लाना चाहते हैं।
तकनीक का कमाल, बंद कमरे में केसर:
पारंपरिक रूप से, केसर को पनपने के लिए कश्मीर जैसा ठंडा तापमान और विशेष जलवायु की आवश्यकता होती है। प्रिया अग्रवाल ने इस बाधा को दूर करने के लिए कंट्रोल्ड एनवायरनमेंट एग्रीकल्चर (Controlled Environment Agriculture) तकनीक अपनाई है।
तकनीक: इसे इंडोर वर्टिकल फार्मिंग (Indoor Vertical Farming) या नियंत्रित जलवायु खेती भी कह सकते हैं।
विधि: प्रिया ने खेती के लिए एक विशेष कमरा तैयार किया, जहाँ उन्होंने तापमान, नमी और प्रकाश (Temperature, Humidity, and Light) को केसर की वृद्धि के लिए आवश्यक स्तर पर नियंत्रित किया।
खेती का तरीका: केसर की खेती मिट्टी के बजाय हाइड्रोपोनिक्स या ऊर्ध्वाधर रैक प्रणाली (Vertical Racks) में की जाती है, जहाँ पोषक तत्व सीधे पौधे तक पहुँचाए जाते हैं।
यह विधि न केवल पानी की बचत करती है, बल्कि वर्षभर किसी भी मौसम में खेती करना संभव बनाती है।
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कमाई का गणित और बाज़ार में मांग
केसर दुनिया के सबसे महंगे मसालों में से एक है। इसकी खेती में भले ही शुरू में नियंत्रित सेटअप बनाने में खर्च अधिक आता है, लेकिन एक बार सफल होने पर मुनाफा कई गुना होता है।
कम लागत में उच्च गुणवत्ता: प्रिया अग्रवाल द्वारा उत्पादित केसर की गुणवत्ता पारंपरिक कश्मीरी केसर से कम नहीं है।
सीधा बाज़ार: उन्होंने अपने उत्पाद को सीधे बाज़ार में बेचा और साथ ही ई-कॉमर्स (E-Commerce) प्लेटफॉर्म पर भी इसे उपलब्ध कराया, जिससे उन्हें बिचौलियों के बिना उच्च लाभ प्राप्त हुआ।
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प्रिया अग्रवाल ने अपनी इस अनोखी पहल के माध्यम से यह साबित कर दिया है कि सही तकनीक और नवाचार का उपयोग करके, किसान सीमित संसाधनों और विपरीत जलवायु परिस्थितियों में भी अत्यधिक मूल्यवान फसलें उगा सकते हैं और अपनी आय को कई गुना बढ़ा सकते हैं। उनकी यह सफलता उन किसानों के लिए एक नया उदाहरण पेश करती है जो कैश क्रॉप्स (Cash Crops) की तलाश में हैं।
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