नई दिल्ली, 1 सितंबर (कृषि भूमि ब्यूरो):
दुनिया के सबसे बड़े उर्वरक (Fertilizer) उत्पादक देशों में शामिल चीन (China) एक बार फिर फॉस्फेट और पोटाश जैसे आवश्यक उर्वरकों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है। यह प्रतिबंध अक्टूबर 2025 से प्रभावी हो सकता है, जिससे भारत समेत कई विकासशील देशों की खाद्य सुरक्षा और कृषि (Agriculture) उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है।
सूत्रों के अनुसार, चीन अपनी घरेलू आपूर्ति को स्थिर रखने और मूल्य वृद्धि पर नियंत्रण के लिए इन उर्वरकों के निर्यात को सीमित करने जा रहा है। यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब वैश्विक स्तर पर उर्वरकों की कीमतों में फिर से बढ़ोतरी देखी जा रही है।
भारत पर क्या होगा असर?
भारत अपनी उर्वरक आवश्यकताओं का एक बड़ा हिस्सा आयात के माध्यम से पूरा करता है। पोटाश और फॉस्फेट, विशेष रूप से DAP (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) और MOP (म्युरेट ऑफ पोटाश) जैसे उर्वरकों के लिए भारत चीन सहित अन्य देशों पर निर्भर है। यदि यह प्रतिबंध लागू होता है, तो भारत में DAP और MOP की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। खरीफ सीजन के बाद रबी सीजन की बुवाई पर असर पड़ सकता है। लघु और सीमांत किसानों की लागत और कर्ज भार बढ़ सकता है। खाद्य उत्पादन में संभावित कमी और मुद्रास्फीति की स्थिति बन सकती है
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यदि चीन ने यह प्रतिबंध लागू किया, तो भारत को वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं जैसे रूस, कनाडा और मोरक्को से बातचीत तेज करनी होगी। सरकार को दीर्घकालिक रणनीति के तहत घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिए।”
भारत सरकार के सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय कृषि एवं रसायन मंत्रालय संभावित आपूर्ति संकट से निपटने के लिए वैकल्पिक आपूर्ति चैनल सक्रिय करने की योजना पर काम कर रहा है। साथ ही, नीम कोटेड यूरिया और अन्य वैकल्पिक उर्वरकों के उत्पादन को भी बढ़ाने पर विचार हो रहा है।
बता दें कि यह पहला अवसर नहीं है जब चीन ने उर्वरकों के निर्यात पर रोक लगाई हो। 2022 में भी चीन ने वैश्विक उर्वरक संकट के दौरान निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था, जिससे भारत और अन्य देशों को बाजार में उर्वरक की भारी कमी और कीमतों में उछाल का सामना करना पड़ा था।
भारत के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण परिस्थिति बन सकती है, जो न केवल कृषि लागत को बढ़ाएगी बल्कि फ़ूड सप्लाई चेन को भी प्रभावित कर सकता है। ज़रूरत इस बात की है कि सरकार समय रहते रणनीतिक कदम उठाए, जिससे किसानों पर प्रभाव न्यूनतम हो और भारत की खाद्य सुरक्षा बनी रहे।
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