मुंबई, 13 अगस्त (कृषि भूमि डेस्क):
भारत ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह हल्दी के वैश्विक व्यापार (Turmeric Market) में निर्विवाद रूप से अग्रणी है। केंद्र सरकार के निर्यात प्रोत्साहन प्रयास, विशेषकर 2023 में राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड का गठन, निर्यात बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इसका असर आँकड़ों में साफ दिखाई देता है—2021 में वैश्विक हल्दी निर्यात 36.77 करोड़ डॉलर था, जिसमें भारत का योगदान 22.55 करोड़ डॉलर यानी 61% था। 2024 में कुल वैश्विक निर्यात बढ़कर 50.27 करोड़ डॉलर हो गया और भारत का योगदान 33.32 करोड़ डॉलर, जो हिस्सेदारी को 66% तक ले गया। यह तीन वर्षों में 5 प्रतिशत अंक की उल्लेखनीय वृद्धि है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार, 2020-21 में भारत से 1,83,868 टन हल्दी का निर्यात हुआ था, जो 2021-22 में घटकर 1,52,758 टन रह गया। हालांकि, इसके बाद दो वर्षों से निर्यात में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 2023-24 में 1,62,019 टन और 2024-25 में 1,76,325 टन हल्दी का निर्यात दर्ज किया गया। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-मई में ही 34,162 टन हल्दी विदेश भेजी जा चुकी है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि से 8.37% अधिक है।
राज्यवार प्रदर्शन में महाराष्ट्र सबसे आगे है। पिछले पाँच वर्षों में राज्य का हल्दी निर्यात मूल्य लगभग दोगुना हुआ—2020-21 में 7.82 करोड़ डॉलर से बढ़कर 2024-25 में 15.53 करोड़ डॉलर। इसके विपरीत, कर्नाटक में निर्यात में भारी गिरावट आई है। 2020-21 में 2.71 करोड़ डॉलर मूल्य की हल्दी का निर्यात करने वाला राज्य 2024-25 में केवल 56.8 लाख डॉलर के स्तर पर पहुँच गया, यानी पाँच वर्षों में चार गुना से अधिक की कमी।
भारतीय हल्दी के प्रमुख खरीदारों में बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका, मलेशिया और मोरक्को शामिल हैं। इन देशों में भारतीय हल्दी की मांग लगातार बढ़ रही है, जिसका कारण है इसका उच्च करक्यूमिन स्तर, गुणवत्ता मानकों का पालन और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी मूल्य। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि उत्पादन और प्रोसेसिंग में तकनीकी निवेश जारी रहा, तो अगले पाँच वर्षों में भारत की हिस्सेदारी 70% से अधिक तक पहुँच सकती है।
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