नई दिल्ली, 31 जुलाई (कृषि भूमि डेस्क):
अमेरिका (America) द्वारा भारतीय कृषि (Agriculture) उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने के निर्णय ने भारत (India) के कृषि निर्यात (Export) क्षेत्र को गहरा झटका दिया है। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (USTR) ने कहा कि यह कदम व्यापार असंतुलन को सुधारने और अमेरिकी किसानों के हितों की रक्षा के लिए उठाया गया है।
नए टैरिफ का सीधा असर भारत के प्रमुख कृषि निर्यातों पर पड़ेगा, जिनमें बासमती चावल, ऑर्गेनिक मसाले, चाय और समुद्री उत्पाद (फिशरी) शामिल हैं। अमेरिका ने इसे “पुनर्संतुलित व्यापार ढांचे” का हिस्सा बताया है, जो पारस्परिकता (reciprocity) और घरेलू कृषि संरक्षण को प्राथमिकता देता है।
भारतीय निर्यातकों में चिंता
भारतीय कृषि निर्यातकों ने इस निर्णय को “गंभीर झटका” बताया है। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024–25 में अमेरिका भारतीय कृषि उत्पादों का लगभग $3.2 बिलियन का सबसे बड़ा बाजार रहा। एक प्रमुख निर्यातक ने बताया कि पहले से ही हम कम मार्जिन पर काम कर रहे हैं। अब इन शुल्कों के बाद अमेरिकी बाजार में टिके रहना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
व्यापार वार्ता में गतिरोध
यह टैरिफ वृद्धि ऐसे समय में आई है जब भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता हाल ही में बिना किसी समझौते के समाप्त हो गई। सूत्रों के अनुसार, वार्ता असफल होने का मुख्य कारण भारत का अमेरिकी डेयरी (Dairy) और कृषि उत्पादों के लिए अपने बाजार खोलने से इनकार करना रहा।
अमेरिका ने भारत पर “गैर-शुल्कीय अवरोध” (non-tariff barriers) लगाने का आरोप लगाया, जबकि भारत ने खाद्य सुरक्षा, घरेलू मानकों और किसान (Farmer) हितों का हवाला दिया। ट्रंप प्रशासन के समय शुरू हुई यह मांग अब भी अमेरिकी नीति में गहराई से जुड़ी हुई है।
इस कदम का असर केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहेगा। भारत और अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में रणनीतिक और रक्षा सहयोग में गहरी साझेदारी बनाई है। लेकिन यह व्यापार विवाद दर्शाता है कि आर्थिक मुद्दों पर असहमति अब भी कायम है।
प्रभावित प्रमुख उत्पाद:
– बासमती चावल: 12% अतिरिक्त शुल्क
– ऑर्गेनिक मसाले (हल्दी, मिर्च): 15% तक
– समुद्री उत्पाद (झींगा, टूना): 10%
– चाय व हर्बल उत्पाद: 8%
भारत सरकार की प्रतिक्रिया
वाणिज्य मंत्रालय ने इस पर “गंभीरी निराशा” जताते हुए कहा कि सरकार इस फैसले के प्रभाव का आकलन कर रही है और निर्यातकों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि “प्रतिस्पर्धी बाजारों की तलाश और शुल्क के खिलाफ जवाबी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक कृषि और बाजार पहुंच जैसे संवेदनशील मुद्दों पर खुली बातचीत नहीं होती, तब तक व्यापक व्यापार समझौते की उम्मीद धूमिल है।
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