नई दिल्ली, 3 नवंबर (कृषि भूमि डेस्क): जीएम-फ्री इंडिया गठबंधन ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और कृषि मंत्रालय पर गंभीर आरोप लगाए हैं। गठबंधन का दावा है कि जीनोम-संपादित चावल की किस्मों — पूसा डीएसटी-1 और डीआरआर धान 100 (कमला) — के प्रचार में ‘वैज्ञानिक धोखाधड़ी’ और आंकड़ों की ‘हेराफेरी’ की गई है।
गठबंधन ने आईसीएआर की अखिल भारतीय समन्वित चावल अनुसंधान परियोजना (AICRPR) की वार्षिक प्रगति रिपोर्ट 2023 और 2024 के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि रिपोर्ट में कई विरोधाभास हैं। इनसे स्पष्ट होता है कि घोषित दावे और वास्तविक परिणाम मेल नहीं खाते।
गठबंधन के अनुसार, आईसीएआर ने यह दावा किया कि पूसा डीएसटी-1 लवणीय और क्षारीय मिट्टी में अपनी गैर-जीएम मूल किस्म एमटीयू-1010 से बेहतर प्रदर्शन करती है। वहीं, डीआरआर धान 100 ‘कमला’ को 17% अधिक उपज, जल्दी पकने और नाइट्रोजन उपयोग दक्षता बढ़ाने वाला बताया गया।
लेकिन गठबंधन द्वारा उद्धृत आईसीएआर की रिपोर्टों के अनुसार, वर्ष 2023 में पूसा डीएसटी-1 के पास लवणता या सूखा सहिष्णुता का कोई परीक्षण डेटा नहीं था। इसके अलावा 20 में से 12 स्थानों पर इसकी उपज एमटीयू-1010 से कम रही। इतना ही नहीं, वर्ष 2024 के परीक्षणों में भी कोई उल्लेखनीय उपज लाभ नहीं पाया गया। जीएम-फ्री इंडिया गठबंधन का कहना है कि चयनित आंकड़ों के आधार पर “30% अधिक उपज” का दावा किया गया, जो भ्रामक है।
कमला किस्म के आंकड़ों पर सवाल
डीआरआर धान 100 ‘कमला’ के प्रदर्शन को लेकर भी गठबंधन ने गंभीर सवाल उठाए। वर्ष 2023 के आंकड़ों में यह किस्म 19 में से 8 स्थानों पर कमजोर रही, जबकि 2024 में कुछ परीक्षण स्थानों के आंकड़े बिना स्पष्टीकरण के हटा दिए गए। गठबंधन का कहना है कि वास्तविक औसत उपज मूल किस्म से 4% कम रही और 20 दिन पहले पकने का दावा भी डेटा द्वारा समर्थित नहीं है।
गठबंधन की सदस्य कविता कुरुगंती ने कहा, “कृषि में गलत विज्ञान का इस्तेमाल, वह भी सार्वजनिक क्षेत्र से, लाखों किसानों की आजीविका को प्रभावित करता है। यह केवल तकनीकी नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का मामला है।”
स्वतंत्र शोधकर्ता सौमिक बनर्जी ने कहा कि यदि तकनीक वास्तव में सुरक्षित और सटीक है, तो सभी डेटा को पारदर्शी रूप से प्रकाशित किया जाना चाहिए।
गठबंधन ने मांग की है कि:
- जीनोम-संपादित किस्मों के सभी प्रचारात्मक दावे तुरंत वापस लिए जाएं।
- आईसीएआर के परीक्षणों और कार्यप्रणाली की स्वतंत्र वैज्ञानिक समीक्षा कराई जाए।
- कृषि मंत्रालय और आईसीएआर को सार्वजनिक रूप से जवाबदेह बनाया जाए।
- जैव सुरक्षा नियम लागू होने तक जीनोम-संपादित फसलों के प्रचार पर रोक लगाई जाए।
आईसीएआर के अधिकारियों से इस मामले पर कोई टिप्पणी प्राप्त नहीं हो सकी।
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