मुंबई, 24 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): भारत के दाल बाजार में एक उलटफेर वाली स्थिति देखने को मिल रही है। मसूर, मटर और तूर दाल के इम्पोर्ट में लगभग 56% की भारी गिरावट दर्ज की गई है, जबकि इसके विपरीत देशभर के थोक और खुदरा बाजारों में दालों के भाव लगातार नीचे आ रहे हैं। सामान्य परिस्थितियों में आयात घटने का मतलब कीमतों में वृद्धि होना होता है, लेकिन इस बार बाजार के संकेत बिल्कुल अलग हैं।
व्यापार विश्लेषकों का कहना है कि दालों के मूल्य में लगातार आ रही गिरावट के पीछे कई प्रमुख कारक हैं, जिनमें घरेलू उत्पादन में सुधार, सरकारी बफर स्टॉक, और बाजार में कमजोर मांग की बड़ी भूमिका है।
सबसे पहले, इस साल मसूर और तूर का घरेलू उत्पादन सामान्य से बेहतर रहा है, जिससे स्थानीय बाजार में आपूर्ति पर्याप्त बनी हुई है। यह सीधे तौर पर कीमतों पर दबाव बनाता है। दूसरी ओर, सरकार के पास तूर और उड़द दाल का बड़ा बफर स्टॉक उपलब्ध है, जिसे जरूरत के अनुसार बाजार में उतारा जा रहा है। इससे व्यापारी कीमतें बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे।
इसके अलावा, त्योहारी सीजन के बाद बाजार में मांग कमजोर हो गई है। कम खपत के चलते व्यापारी अपने पुराने स्टॉक को निकालना चाहते हैं, जिससे दाम और कम होते दिख रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती कीमतों के कारण भारत ने पिछले महीनों में आयात कम किया, जिससे कुल इम्पोर्ट 56% घट गया। लेकिन घरेलू स्टॉक मजबूत होने के कारण इसका दामों पर कोई तेज़ी वाला असर नहीं पड़ा।
ट्रेडिंग सेंटीमेंट भी इस समय कमजोर बना हुआ है। आयात कम होने की खबरें शुरुआती दौर में तेजी की वजह बनी थीं, लेकिन बाजार में पर्याप्त स्टॉक और स्थिर आपूर्ति दिखने के बाद व्यापारियों ने भी ऊंचे भाव पर खरीदारी कम कर दी।
आगे की बात करें तो एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि रबी सीजन की मसूर फसल अच्छी रहती है, तो दालों के भाव आने वाले महीनों में भी स्थिर या और कम हो सकते हैं। हालांकि, तूर को लेकर मौसम आधारित अनिश्चितता कुछ चुनौती पेश कर सकती है।
कुल मिलाकर, दालों के इम्पोर्ट में भारी गिरावट के बावजूद, घरेलू आपूर्ति और सरकारी नीतियों ने कीमतों को स्थिर रखा है, जिससे उपभोक्ताओं को राहत मिल रही है।
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