नई दिल्ली, 30 जुलाई (कृषि भूमि ब्यूरो):
भारतीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) ने कर्नाटक में 3,500 छोटे और मध्यम किसानों को शामिल करते हुए एक महत्वाकांक्षी कार्बन क्रेडिट पायलट प्रोजेक्ट (Carbon Credit Pilot Project) की शुरुआत की है। यह परियोजना बायोमास (Biomass) प्रबंधन, वृक्षारोपण, और कृषि पद्धतियों के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित है। इस पहल का उद्देश्य किसानों को पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ अतिरिक्त आय स्रोत प्रदान करना है।
परियोजना का मूल उद्देश्य
NABARD द्वारा संचालित इस परियोजना के अंतर्गत किसान जैविक कचरे का वैज्ञानिक उपयोग, सघन वृक्षारोपण, और कृषि अपशिष्ट से उर्वरक बनाने जैसे कार्यों में हिस्सा ले रहे हैं। इसके बदले में उन्हें अंतरराष्ट्रीय कार्बन बाजार से कार्बन क्रेडिट बेचने का अवसर मिलेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मॉडल किसानों को पारंपरिक खेती के साथ-साथ पर्यावरणीय सेवाओं का प्रदाता भी बना सकता है।
कैसे काम करता है कार्बन क्रेडिट मॉडल?
कार्बन क्रेडिट सिस्टम के तहत, एक किसान यदि वातावरण में एक टन CO₂ या उसके समतुल्य उत्सर्जन को रोकने या अवशोषित करने में सफल रहता है, तो उसे एक क्रेडिट मिलता है। ये क्रेडिट कॉरपोरेट कंपनियों या विदेशी संस्थानों को बेचे जा सकते हैं जो अपने कार्बन फुटप्रिंट को संतुलित करना चाहते हैं।
भुगतान में देरी बनी चुनौती
हालांकि यह परियोजना भविष्य के लिए आशाजनक मानी जा रही है, लेकिन फील्ड स्तर पर किसानों को भुगतान मिलने में देरी की शिकायतें सामने आई हैं। कई किसानों का कहना है कि उन्होंने वृक्षारोपण और जैव प्रबंधन के कार्य समय से पूरे किए हैं, लेकिन कार्बन क्रेडिट के सत्यापन और व्यापार में लंबा समय लग रहा है। ख़बरों के मुताबिक, किसानों ने निर्देशों के अनुसार पेड़ लगाए और खेत का कचरा नष्ट करने की जगह खाद बनाने में लगाए, लेकिन 8 महीने बाद भी कोई भुगतान नहीं आया। हालाँकि, NABARD का कहना है कि कार्बन बाजार की प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय मानकों के कारण जटिल और समय लेने वाली है। सत्यापन, प्रमाणन और क्रेडिट ट्रेडिंग में औसतन 9 से 12 महीने लग सकते हैं।
कुलमिलाकर, कर्नाटक में NABARD की यह पहल भारतीय किसानों को वैश्विक कार्बन अर्थव्यवस्था से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि भुगतान प्रक्रिया को समयबद्ध और पारदर्शी बनाया जा सके, तो यह मॉडल पर्यावर संरक्षण और किसानों की आमदनी – दोनों के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।
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