यूपी–उत्तराखंड में गन्ने की किल्लत से हिला चीनी उद्योग, एसएपी से ऊपर पहुंचे दाम

लखनऊ, 25 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश और उससे सटे उत्तराखंड में चालू पेराई सीजन (2025-26) की शुरुआत के साथ ही चीनी मिलें गन्ने की पर्याप्त आपूर्ति के लिए संघर्ष करती नजर आ रही हैं। खेतों में फसल भले ही देखने में ठीक-ठाक लग रही हो, लेकिन किसानों और उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल गन्ने की उत्पादकता पिछले वर्ष के मुकाबले करीब 10 प्रतिशत कम है।

इस कमी का सीधा असर बाजार पर पड़ा है। बीते कुछ दिनों में गन्ने के दाम तेजी से बढ़े हैं और कई जगह यह राज्य सरकार द्वारा तय राज्य परामर्श मूल्य (SAP) को भी पार कर गया है। नतीजतन, यूपी के कई इलाकों में ‘केन प्राइस वॉर’ जैसी स्थिति बन गई है, जिससे चीनी मिलों के सामने कच्चे माल का गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।

एसएपी से ऊपर पहुंचा बाजार भाव

उत्तर प्रदेश में कई गुड़ और खांडसारी इकाइयां 400 से 425 रुपये प्रति क्विंटल तक के भाव पर गन्ना खरीद रही हैं। इससे जहां किसानों को बेहतर रेट मिल रहा है, वहीं चीनी मिलों के लिए प्रतिस्पर्धा तेज हो गई है। उद्योग जगत का मानना है कि यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रही, तो राज्य में चीनी उत्पादन बढ़ने के अनुमान पर सवाल खड़े हो सकते हैं।

गुड़ उद्योग की मजबूरी

शामली जिले के आधुनिक गुड़ इकाई के संचालक बताते हैं कि इस साल गन्ने की उपलब्धता को लेकर लगातार दिक्कतें आ रही हैं।

“हमें गन्ने का भाव 380 रुपये से बढ़ाकर 400 रुपये प्रति क्विंटल करना पड़ा है। फसल देखने में अच्छी है, लेकिन शुगर कंटेंट अपेक्षा से कम है। इससे वजन और रिकवरी दोनों प्रभावित हुई हैं,”

उनका कहना है कि गन्ने की कमी के चलते यूनिट को केवल 12 घंटे ही चलाया जा रहा है। हालांकि गुड़ के दाम 38 रुपये से घटकर 34 रुपये प्रति किलो हो गए हैं, लेकिन करीब 14 प्रतिशत रिकवरी के कारण फिलहाल बेहतर गन्ना मूल्य देना संभव हो पा रहा है।

चीनी मिलों की दोहरी चुनौती

मेरठ जिले की एक प्रमुख चीनी मिल के सीनियर कर्मचारी के अनुसार,

“गन्ने का भाव बढ़ने के बावजूद पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना मुश्किल हो रहा है। यही वजह है कि मिलों के बीच अधिक से अधिक पेराई करने की होड़ मची है।”

उनका कहना है कि मौसम और रोगों के कारण उत्पादन में गिरावट, साथ ही कोल्हू और खांडसारी इकाइयों से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा ने हालात को और मुश्किल बना दिया है। हालांकि मिलें किसानों को आकर्षित करने के लिए एक सप्ताह के भीतर भुगतान कर रही हैं, फिर भी गन्ना जुटाना आसान नहीं हो पा रहा।

घटता रकबा, बदलता फसल पैटर्न

पिछले दो वर्षों से एसएपी में प्रभावी बढ़ोतरी न होने और गन्ना कटाई की लागत 55–60 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचने से किसानों का रुझान गन्ने से कमजोर पड़ा है।

पश्चिमी यूपी के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और शामली जैसे जिलों में किसान तेजी से पॉपलर और यूकेलिप्टिस जैसी एग्रो-फॉरेस्ट्री फसलों की ओर बढ़ रहे हैं। यह बदलाव चीनी मिलों के लिए दीर्घकालिक चुनौती बनता जा रहा है।

उत्तराखंड में कोल्हू हावी

उत्तराखंड के किसान बताते हैं कि

“कोल्हू 430 से 450 रुपये प्रति क्विंटल तक गन्ने का दाम दे रहे हैं और भुगतान तुरंत होता है। इसलिए किसान चीनी मिलों की बजाय कोल्हू को गन्ना देना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।”

एक अन्य किसान का कहना है कि मजदूरों की कमी और वर्षों से रेट न बढ़ने के कारण किसान एग्रो-फॉरेस्ट्री की ओर बढ़े हैं।

“अब कोल्हू पर गन्ने के ढेर लगे रहते हैं, जबकि चीनी मिलों पर पहले जैसी ट्रॉलियों की लंबी कतारें नजर नहीं आतीं।”

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने इस साल एसएपी 30 रुपये बढ़ाकर 400 रुपये प्रति क्विंटल, जबकि उत्तराखंड में 405 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। इसके बावजूद, बीते दो वर्षों में भाव स्थिर रहने और रेड रॉट जैसी बीमारियों के कारण उत्पादन में गिरावट आई है।

यही वजह है कि पिछले साल दोनों राज्यों में कई चीनी मिलों को समय से पहले पेराई सत्र बंद करना पड़ा था। मौजूदा हालात को देखते हुए, जानकारों का मानना है कि इस साल संकट और गहरा सकता है।

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