मुंबई, 11 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): काली मिर्च के बाजार में मंदी-के संकेत दिखने लगे हैं। भारत में निर्यात की गति धीमी पड़ गई है और घरेलू आवक (उत्पादन/आमद) बढ़ने से इसे कीमतों का दबाव सामना करना पड़ रहा है। विश्लेषकों के अनुसार, इसमें प्रमुख कारण हैं – निर्यात में कमी, आयात प्रतिस्पर्धा, मौसम-परिस्थितियों का प्रभाव और घरेलू उत्पादन के साथ आवक का बढ़ना।
काली मिर्च की निर्यात-मांग में कमी देखी जा रही है। सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि निर्यात राजस्व पिछले वर्ष की तुलना में गिरावट पर है। घरेलू बाज़ार में आवक बढ़ गई है, जिससे कीमतों पर दबाव बन गया है। एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारी बारिश, उत्तरी भारत में मौसम-प्रभाव और आयात से घरेलू बाज़ार कमजोर हुआ। भारत में उत्पादन में भी गिरावट आई है। 2024-25 में उत्पादन लगभग 75,000 टन के आसपास आ गया, जो पिछले साल से कम रहा। हालांकि वैश्विक स्तर पर काली मिर्च के कुछ प्रमुख उत्पादक देशों में आपूर्ति-संकट है, भारत के लिए घरेलू एवं निर्यात दोनों बाज़ार में चुनौतियाँ बढ़ रही हैं।
किसान-उत्पादकों को कम भाव मिलने की संभावना बढ़ गई है क्योंकि बाज़ार में मांग कम और स्टॉक बढ़ रहा है। निर्यात-उन्मुख कृषि वाले किसानों को तत्काल रणनीति बदलने की जरूरत हो सकती है, जैसे कि गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उगाना, वैल्यू एडेड (मूल्य संवर्धित) उत्पाद बनाना।
किसान को सलाह दी जा रही है कि वे उच्च गुणवत्ता वाले मिर्च किस्में अपनाएं, ताकि एक्सपोर्ट-मानदंड पूरे करें और बेहतर कीमत पा सकें। व्यापारियों व निर्यातकों को यह देखना होगा कि विदेशी खरीद-रुझान क्या हैं, और कैसे वे प्रतिस्पर्धी बने- रह सकते हैं। सरकार व कृषि-विभाग को समय-समय पर डेटा संग्रह करना होगा कि कितनी आवक हो रही है, किस गुणवत्ता की मिर्च सामने आ रही है, और निर्यात के लिए क्या बाधाएँ हैं।
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