मुंबई, 13 अक्टूबर (कृषि भूमि ब्यूरो): अंतरराष्ट्रीय कॉपर बाजार में इस समय दो विपरीत रुझान देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ लंदन मेटल एक्सचेंज (LME) पर कॉपर की कीमतों में तेज़ी आई है, वहीं दूसरी ओर शंघाई फ्यूचर्स एक्सचेंज (SHFE) पर भाव दबाव में हैं। इसका मुख्य कारण LME में सप्लाई से जुड़ी चिंताएं हैं, जबकि SHFE पर व्यापारिक तनाव और चीन की मांग से जुड़ी अनिश्चितताएं हावी हैं।
LME में कॉपर की कीमतें हाल ही में $11,000 प्रति टन के स्तर तक पहुंच गईं, जो मई 2024 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है। इसके पीछे बड़ा कारण है ग्लोबल सप्लाई चैन में आई बाधाएं। इंडोनेशिया और अन्य प्रमुख तांबा उत्पादक क्षेत्रों में खान संचालन में व्यवधान की खबरें सामने आई हैं। वहीं, LME गोदामों में तांबे का स्टॉक कम होते जा रहा है, जिससे खरीदारों में तत्काल डिलीवरी की होड़ मच गई है। यह स्थिति “बैकवर्डेशन” का संकेत देती है, यानी तत्काल डिलीवरी की कीमतें वायदा कीमतों से ज़्यादा हैं।
इसके विपरीत, SHFE में कॉपर की कीमतों पर दबाव बना हुआ है। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापार तनाव ने बाजार की धारणा को कमजोर किया है। ट्रेडर्स इस बात को लेकर चिंतित हैं कि यदि टैरिफ या अन्य व्यापारिक प्रतिबंध लगाए गए, तो चीन की ओर से तांबे की मांग में गिरावट आ सकती है। हालाँकि SHFE के गोदामों में स्टॉक लगभग 5% घटा है, फिर भी यह गिरावट बाजार को समर्थन देने के लिए पर्याप्त नहीं रही।
इसके अलावा, इंटरनेशनल कॉपर स्टडी ग्रुप (ICSG) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2026 तक वैश्विक तांबा बाजार में 1.5 लाख मीट्रिक टन की आपूर्ति कमी देखी जा सकती है। यदि खनन गतिविधियाँ तेज़ नहीं होतीं, तो आने वाले वर्षों में LME जैसे एक्सचेंजों पर कीमतें और भी ऊपर जा सकती हैं।
फिलहाल निवेशक और उद्योग जगत दोनों ही स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। जहां एक ओर LME में तांबे की कीमतें तेज़ी से ऊपर जा रही हैं, वहीं SHFE में सतर्कता बनी हुई है। आगे की स्थिति इस बात पर निर्भर करेगी कि व्यापारिक तनाव कैसे सुलझते हैं और खनन उत्पादन कितनी तेजी से सामान्य हो पाता है।
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