दिल्ली, 07 अक्टूबर (कृषि भूमि ब्यूरो): देश में जैविक खेती का रुझान तेजी से बढ़ रहा है। दस साल पहले केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) ने इस बदलाव को गति दी है। इस योजना के तहत अब तक 15 लाख हेक्टेयर भूमि को जैविक खेती के दायरे में लाया जा चुका है, जिससे लगभग 25.30 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं।
जैविक खेती का विस्तार
पीकेवीवाई के माध्यम से किसानों को प्रति हेक्टेयर ₹31,500 की सहायता दी जाती है, जो तीन वर्षों की अवधि में प्रदान की जाती है। इसमें ₹15,000 ऑन-फार्म और ऑफ-फार्म जैविक इनपुट के लिए, ₹4,500 मार्केटिंग, पैकेजिंग और ब्रांडिंग के लिए, ₹3,000 प्रमाणन और रेजिड्यू एनालिसिस के लिए तथा ₹9,000 प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए शामिल हैं।
इस योजना का मूल आधार क्लस्टर मॉडल है, जिसमें किसानों को 20-20 हेक्टेयर के समूहों में संगठित कर जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसका उद्देश्य पर्यावरण अनुकूल, कम लागत वाली और रसायन मुक्त कृषि को बढ़ावा देना है।
एलएसी से मिली नई दिशा
2020-21 में सरकार ने Large Area Certification (LAC) कार्यक्रम शुरू किया, जिसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में जैविक खेती को प्रमाणित करना है जहां पहले कभी रासायनिक खेती नहीं हुई। इस प्रक्रिया से जैविक प्रमाणन कुछ ही महीनों में मिल जाता है, जो सामान्यतः 2-3 साल में मिलता है।
एलएसी के तहत दंतेवाड़ा में 50,279 हेक्टेयर, पश्चिम बंगाल में 4,000 हेक्टेयर, कार निकोबार और नानकॉरी द्वीप समूह में 14,491 हेक्टेयर, लक्षद्वीप में 2,700 हेक्टेयर, सिक्किम में 60,000 हेक्टेयर और लद्दाख में 5,000 हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के अंतर्गत लाया गया है।
सरकारी निवेश और डिजिटल पहल
सरकार ने 2015 से 2025 के बीच पीकेवीवाई योजना के तहत ₹2,265.86 करोड़ खर्च किए हैं। इस दौरान 52,289 क्लस्टर बनाए गए और जैविक खेती को डिजिटल रूप से भी बढ़ावा मिला। दिसंबर 2024 तक जैविक खेती पोर्टल पर 6.23 लाख किसान, 19,016 स्थानीय समूह, 89 इनपुट आपूर्तिकर्ता और 8,676 खरीदार पंजीकृत हो चुके हैं।
जैविक खेती अब सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता और खाद्य सुरक्षा की दिशा में एक मजबूत कदम बन चुका है। सरकार और किसानों के संयुक्त प्रयासों से यह आंदोलन और भी व्यापक होता जा रहा है।
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