मुंबई, 10 नवंबर (कृषि भूमि डेस्क): वर्ल्ड बैंक की कमोडिटी मार्केट्स आउटलुक, अक्टूबर 2025 रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले दो वर्षों 2025 और 2026 में ग्लोबल कमोडिटी कीमतों में औसतन 7% तक गिरावट की संभावना है। यह प्रवृत्ति लगातार चौथे साल जारी रहेगी, जब ऊर्जा, धातु और कृषि वस्तुओं जैसी प्रमुख श्रेणियों के दाम विश्व स्तर पर और सस्ते होंगे, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों का दबाव और गहराने की आशंका है।

रिपोर्ट कहती है, ‘कमजोर वैश्विक मांग, स्थिर आपूर्ति और नीति-अनिश्चितता के कारण 2026 तक कमोडिटी कीमतें 6 साल के निचले स्तर पर आ सकती हैं।’ वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट में 2025 में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 6.1%, और 2026 में लगभग 0.3% की गिरावट का अनुमान है। ब्रेंट क्रूड ऑयल 2025 में औसतन $68/बैरल, और 2026 में घटकर $60/बैरल रह सकता है।

भारत पर असर: राहत और जोखिम का संतुलन

🟢 राहत की बात – उपभोक्ताओं के लिए कम महंगाई: विश्व बैंक की अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट के बाद भारत में उपभोक्ताओं को महंगाई से ठोस राहत मिलने लगी है। खाद्य और ईंधन कीमतों में नरमी के कारण देश की खुदरा मुद्रास्फीति 2025 की दूसरी छमाही में घटकर लगभग 2.1% के स्तर पर पहुंच गई, जो पिछले छह वर्षों का न्यूनतम स्तर है। तेल और उर्वरक के सस्ते होने से सरकार के आयात बिल में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे राजकोषीय घाटे पर भी नियंत्रण संभव हुआ है।

घरेलू स्तर पर इसका सीधा असर आम नागरिकों की थाली और रोज़मर्रा के खर्च पर दिखाई दे रहा है। Crisil की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार सब्ज़ियों, दालों और खाद्य तेलों की औसत लागत में करीब 10% की गिरावट आई है, जिससे घर की रसोई का बजट हल्का हुआ है। शहरी उपभोक्ताओं के लिए यह राहत उपभोग बढ़ाने का अवसर भी है, जिससे खुदरा बाज़ार में मांग का संचार देखा जा रहा है।

🟡 जोखिम वाली बात – किसानों की आय में गिरावट: इस नरमी का दूसरा पहलू ग्रामीण भारत के लिए चिंता का विषय है। कृषि वस्तुओं की कीमतें गिरने से किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से ऊपर बिक्री करना कठिन हो गया है। फसल के दाम स्थिर या घटते जा रहे हैं, जबकि उर्वरक लागत में 21% की वृद्धि और डीज़ल की ऊँची कीमतों ने उत्पादन लागत को और बढ़ा दिया है।

इस स्थिति में किसानों के लाभांश (profit margins) सिकुड़ गए हैं, जिससे ग्रामीण क्रयशक्ति पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इसके साथ ही कृषि निर्यात में सुस्ती आने से ग्रामीण मांग में कमजोरी दिखने लगी है — जो न केवल किसानों की आय बल्कि ग्रामीण रोजगार और छोटे उद्योगों की गतिविधियों को भी प्रभावित कर सकती है।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत अब “मुद्रास्फीति राहत” और “कृषक आय स्थिरता” के बीच एक नाज़ुक संतुलन की स्थिति में है, जहाँ दोनों लक्ष्यों को समानांतर बनाए रखने के लिए सक्रिय नीति हस्तक्षेप आवश्यक है।

राज्यवार प्रभाव और सुझाव

🟡 महाराष्ट्र – प्याज और कपास किसानों पर गहरा असर: महाराष्ट्र के नासिक और अहमदनगर मंडियों में प्याज के दाम इस समय गहरे संकट में हैं। थोक बाजारों में प्याज का भाव ₹1,000 से ₹1,400 प्रति क्विंटल तक गिर चुका है, जबकि किसानों की उत्पादन लागत ₹2,500 से अधिक बैठ रही है। बंपर फसल और निर्यात मांग में आई सुस्ती ने किसानों की नकदी-स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। कई किसानों का कहना है कि मंडी में भाव इतने नीचे हैं कि वे अपनी उपज को बाजार तक ले जाने का खर्च भी नहीं निकाल पा रहे।

संभावित समाधान: ऐसे हालात में राज्य सरकार को “ट्रिगर-आधारित बफर खरीद नीति” लागू करनी चाहिए, जिसके तहत कीमतें तय सीमा से नीचे गिरते ही स्वचालित सरकारी खरीद शुरू हो जाए। साथ ही, प्याज और सोयाबीन किसानों के लिए फ्यूचर्स-मार्केट प्रशिक्षण कार्यक्रम (MSAMB की पहल) का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि किसान भविष्य के मूल्य-जोखिम से स्वयं को सुरक्षित कर सकें। इसके अलावा, प्याज डिहाइड्रेशन, पैकेजिंग और प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश को प्रोत्साहन देकर उत्पाद का वैल्यू-एडिशन बढ़ाया जा सकता है — इससे किसानों को घरेलू और निर्यात दोनों बाजारों में बेहतर कीमत मिल सकेगी।

🟢 उत्तर प्रदेश – धान और गेहूं किसानों के लिए राहत व चुनौती साथ: उत्तर प्रदेश में धान और गेहूं उत्पादक किसानों के लिए मौजूदा हालात राहत और चुनौती दोनों लेकर आए हैं। राज्य सरकार ने हाल ही में गैर-हाइब्रिड धान पर 1% रिकवरी रिबेट लागू की है, जिससे लगभग 15 लाख किसानों को सीधा लाभ मिलने की उम्मीद है। इस निर्णय का उद्देश्य मिलर्स को प्रोत्साहित करना और किसानों से धान की सुचारु खरीद सुनिश्चित करना है।
हालांकि, ज़मीनी स्तर पर मंडियों में धान की कीमतें अब भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के आसपास ही बनी हुई हैं, जिससे किसानों को लागत और लाभ के बीच सीमित मार्जिन मिल पा रहा है। बढ़ती इनपुट लागत – जैसे डीज़ल, बीज और उर्वरक – ने प्रॉफिट को और घटा दिया है।

संभावित समाधान: किसानों की आय स्थिर रखने के लिए राज्य सरकार को “प्राइस-डिफरेंस पेमेंट स्कीम” लागू करनी चाहिए, जिसके तहत यदि बाजार मूल्य MSP से कम हो, तो किसानों को अंतर की सीधी प्रतिपूर्ति की जाए। इसके साथ ही, धान मिलिंग और स्टोरेज क्षमता में वृद्धि से गुणवत्ता सुधार और बेहतर भाव सुनिश्चित किया जा सकता है।

राज्य के पूर्वी हिस्से बलिया, गाजीपुर, देवरिया और बस्ती जैसे जिलों में निर्यात-उन्मुख कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग मॉडल को बढ़ावा देना भी समय की मांग है। इससे किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों से सीधे जुड़ने का अवसर मिलेगा और स्थानीय उपज का मूल्यवर्धन संभव होगा।

🟣 मध्य प्रदेश – सोयाबीन और दलहन किसानों के लिए दबाव: मध्य प्रदेश, जो देश का प्रमुख सोयाबीन उत्पादक राज्य है, वहां के किसानों के लिए मौजूदा बाजार स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। राज्यभर की मंडियों में सोयाबीन की औसत कीमतें ₹4,400 से ₹4,700 प्रति क्विंटल के बीच सीमित हैं, जबकि सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ₹4,850 है।

विश्व बैंक की Commodity Markets Outlook (October 2025) रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सोयाबीन की आपूर्ति में बढ़ोतरी के कारण 2026 तक कीमतों में 3–5% अतिरिक्त गिरावट की संभावना है। इस अंतरराष्ट्रीय रुझान का सीधा असर मध्य प्रदेश के किसानों की आय पर पड़ सकता है।
राज्य के कई जिलों — इंदौर, देवास, होशंगाबाद और सीहोर — में मंडी भाव पहले से ही MSP से नीचे टिके हुए हैं, जिससे किसानों को उत्पादन लागत तक निकालना मुश्किल हो रहा है।

संभावित समाधान: राज्य सरकार को “भावांतर भुगतान योजना 2.0” को और प्रभावी बनाते हुए इसे तेज़, पारदर्शी और समयबद्ध भुगतान प्रणाली के रूप में लागू करना चाहिए, ताकि किसानों को मूल्य-अंतर का भुगतान बिना देरी के सीधे उनके खातों में मिल सके।

साथ ही, क्रशिंग इंडस्ट्री को MSP से लिंक करने की नीति अपनाई जानी चाहिए, जिससे प्रोसेसिंग यूनिट्स किसानों से न्यूनतम गारंटीकृत दर पर खरीद सुनिश्चित कर सकें और सीज़नल गिरावट के दौरान कीमतों में स्थिरता बनी रहे।

इसके अलावा, किसानों की लागत घटाने के लिए उर्वरक-सब्सिडी, माइक्रो-इरिगेशन योजनाओं और जैव उर्वरकों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाना आवश्यक है — ताकि उत्पादन लागत कम हो और लाभांश में सुधार हो सके।

🔵 कर्नाटक – कॉफी और मक्का किसानों पर अंतरराष्ट्रीय असर:  कर्नाटक, जो भारत के कुल कॉफी उत्पादन का लगभग 70% हिस्सा देता है, इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार की गिरती कीमतों से प्रभावित हो रहा है। राज्य की कॉफी कीमतें वैश्विक बेंचमार्क – Intercontinental Exchange (ICE) और London International Futures (LIFFE) – से सीधे जुड़ी होती हैं।

विश्व बैंक की Commodity Markets Outlook (October 2025) रिपोर्ट के अनुसार, लैटिन अमेरिका में रिकॉर्ड उत्पादन और आपूर्ति बढ़ने के कारण 2026 तक वैश्विक कॉफी कीमतों में 7–10% की गिरावट की संभावना है। इस गिरावट का सीधा असर कर्नाटक के प्रमुख कॉफी क्षेत्रों – कूर्ग, चिकमगलूर और हासन – के उत्पादकों पर पड़ सकता है, जहाँ पहले से ही बढ़ती उर्वरक और श्रम लागत ने लाभांश को कम कर दिया है।

कई छोटे उत्पादक किसान निर्यातकों से मिलने वाले भाव पर निर्भर रहते हैं, और अंतरराष्ट्रीय कीमतों में यह उतार-चढ़ाव उनकी सालभर की आय को अस्थिर बना देता है।

संभावित समाधान: इस स्थिति में कर्नाटक सरकार और कॉफी बोर्ड को मिलकर “स्पेशल्टी कॉफी वैल्यू-चेन” विकसित करनी चाहिए — जिसमें GI-लॉट की पहचान, ब्रांडेड पैकेजिंग और सीधे निर्यातकों के साथ करार शामिल हों। इससे भारतीय कॉफी को प्रीमियम बाजारों में विशिष्ट पहचान मिल सकेगी और किसानों को बेहतर दाम प्राप्त होंगे।

साथ ही, बढ़ती उर्वरक लागत को संतुलित करने के लिए FPO आधारित सामूहिक खरीद मॉडल अपनाया जा सकता है, जिससे छोटे किसानों को थोक दरों पर इनपुट उपलब्ध हो सकें।

इसके अलावा, “फ्यूचर्स-हेजिंग SOP” (Standard Operating Procedure) तैयार कर किसानों को प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि वे मूल्य अस्थिरता से बचाव के लिए अंतरराष्ट्रीय फ्यूचर्स बाजारों का लाभ उठा सकें। इससे कॉफी उत्पादकों को न केवल जोखिम प्रबंधन की समझ बढ़ेगी, बल्कि वे अपने उत्पाद के लिए दीर्घकालिक स्थिरता भी हासिल कर पाएंगे।

सभी राज्यों के लिए उपयोगी कदम क्या हो सकते हैं?

1️⃣ रियल-टाइम मूल्य निगरानी प्रणाली: हर राज्य की मंडियों (APMCs) में एक डिजिटल सिस्टम बनाया जाए, जो रोज़ाना फसलों के दाम की निगरानी करे। जब किसी फसल का भाव तय सीमा (ट्रिगर बैंड) से नीचे गिरने लगे, तो सरकार तुरंत हस्तक्षेप कर खरीदी शुरू करे। इससे किसानों को नुकसान से बचाया जा सकेगा।

2️⃣ वैल्यू-एडेड कृषि नीति: ऐसे उत्पादों को बढ़ावा दिया जाए जिनसे किसानों को सामान्य फसल के मुकाबले ज्यादा मुनाफा मिले — जैसे प्याज पाउडर, सोया प्रोटीन, पॉलिश्ड चावल, स्पेशल्टी कॉफी आदि। इन पर टैक्स में रियायत और प्रोसेसिंग इकाइयों को प्रोत्साहन दिया जाए ताकि स्थानीय स्तर पर वैल्यू-एडिशन हो और रोजगार भी बढ़े।

3️⃣ जोखिम प्रबंधन (F&O और बीमा): किसानों के समूह (FPOs) को फ्यूचर्स मार्केट तक पहुंच दी जाए ताकि वे पहले से तय दामों पर अपनी उपज बेच सकें। इसके अलावा, फसल बीमा योजनाओं में केवल मौसम ही नहीं, बल्कि कीमतों में गिरावट का जोखिम भी शामिल किया जाए।

4️⃣ इनपुट लागत नियंत्रण: महंगे उर्वरकों और डीज़ल से बचने के लिए किसानों को सौर ऊर्जा, जैव उर्वरक और स्मार्ट सिंचाई तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इससे खेती की लागत घटेगी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।

5️⃣ कृषि डिजिटल डेटा डैशबोर्ड: एक ऐसा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाया जाए जहाँ किसान आसानी से बाजार भाव, निर्यात की मांग, मौसम की जानकारी और सरकारी योजनाओं की अपडेट एक ही जगह देख सकें। इससे वे बेहतर फैसले ले सकेंगे — कब, कहाँ और किस भाव पर अपनी फसल बेचनी है।

भारत के लिए नीति का निर्णायक क्षण

विश्व बैंक की अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि वैश्विक स्तर पर कमोडिटी कीमतों में आई गिरावट सिर्फ एक आर्थिक उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि एक संरचनात्मक परिवर्तन है — यानी यह बदलाव लंबे समय तक असर डाल सकता है। भारत के लिए यह स्थिति दो अलग दिशाओं के द्वार खोलती है।

पहली दिशा में, यह गिरावट उपभोक्ताओं और उद्योगों के लिए राहत लेकर आती है — तेल, धातु और खाद्य वस्तुओं जैसी ज़रूरी चीज़ों की कीमतें स्थिर और सस्ती रह सकती हैं, जिससे महंगाई पर नियंत्रण रहेगा और उत्पादन लागत घटेगी।

लेकिन दूसरी दिशा में, यही प्रवृत्ति किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए झटका बन सकती है। फसल के दाम नीचे जाने से किसानों की आय घटेगी, जिससे ग्रामीण मांग कमजोर पड़ सकती है और खेती पर निर्भर क्षेत्रों में आर्थिक दबाव बढ़ेगा।

अब यह भारत की नीति दिशा पर निर्भर करेगा कि वह इस वैश्विक नरमी को “राहत का अवसर” बनाएगा या यह “कृषि आय के जोखिम” में बदल जाएगी।

अगर देश कृषि, ऊर्जा और व्यापार – इन तीनों क्षेत्रों में सक्रिय और समन्वित रणनीति अपनाता है, तो यह दौर भारत के लिए केवल गिरावट नहीं, बल्कि संतुलित और टिकाऊ विकास का अवसर साबित हो सकता है।

(Source: World Bank – Commodity Markets Outlook (October 2025); Reuters, Coffee Board of India, Crisil Report 2025, RBI Bulletin.)

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