Agri News: कानपुर कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की जलवायु-सहनशील गेहूं की किस्में, सूखे और गर्मी में भी देंगी अच्छी पैदावार

Wheat News

नई दिल्ली, 31 जुलाई (कृषि भूमि ब्यूरो):

कानपुर (Kanpur) के चंद्रशेखर आज़ाद (Chandrashekhar Azad) कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने गेहूं (Wheat) की ऐसी नवीन किस्में विकसित की हैं जो वर्षा-आधारित सिंचाई (Irrigation) पर भी बेहतर उत्पादन देने में सक्षम हैं और जलवायु परिवर्तन (Climate change) से उत्पन्न कठिन परिस्थितियों — जैसे अत्यधिक गर्मी, असामान्य वर्षा और सूखे — का प्रभावी ढंग से सामना कर सकती हैं। कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि यह विकास भारत की खाद्य सुरक्षा के लिहाज से एक अहम कदम है।

इन गेहूं किस्मों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह कम सिंचाई की स्थिति में भी अच्छी उपज देती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, जहां पारंपरिक किस्मों को 4–5 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, वहीं यह नई किस्म मात्र 2–3 बार सिंचाई में ही 35–40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देने में सक्षम है। इसके अलावा, ये किस्में पीली रतुआ, भूरे रतुआ और पत्तियों की झुलसन जैसी बीमारियों के प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता रखती हैं।

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. संजय सिंह ने कहा, “जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की नहीं, वर्तमान की चुनौती है। हमें ऐसी फसलों की ज़रूरत है जो अनिश्चित मौसम में भी किसानों को भरोसेमंद उत्पादन दें। हमारी टीम ने इसी सोच के साथ ये गेहूं किस्में विकसित की हैं।”

यह शोध और नवाचार विशेष रूप से उन किसानों के लिए सहायक होगा जो कम वर्षा वाले या सूखाग्रस्त क्षेत्रों — जैसे बुंदेलखंड, विदर्भ, झारखंड और राजस्थान — में खेती करते हैं। इन किस्मों की अल्पावधि (110–115 दिन) में फसल पकने की क्षमता किसानों को समय और संसाधनों की बचत करने में भी मदद करेगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत (India) की बढ़ती जनसंख्या और बदलते मौसम के बीच खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए ऐसी फसल किस्में बेहद आवश्यक हैं। यदि इन किस्मों का बड़े पैमाने पर प्रचार और बीज वितरण किया जाए, तो यह देश की गेहूं उत्पादकता में बड़ा बदलाव ला सकती हैं। खासकर ऐसे समय में जब जल संकट और तापमान वृद्धि किसानों की सबसे बड़ी चुनौतियाँ बन चुकी हैं।

कृषि मंत्रालय (Ministry of Agriculture) ने भी इन किस्मों पर रुचि दिखाई है और जल्द ही इन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत प्रायोगिक ज़िलों में शामिल किए जाने की संभावना है।

कुल मिलाकर, कानपुर कृषि विश्वविद्यालय की यह उपलब्धि न केवल एक वैज्ञानिक सफलता है, बल्कि यह भारत के करोड़ों किसानों के लिए आशा की एक नई किरण साबित हो सकती है।

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