पूसा कृषि विश्वविद्यालय: तीन दिवसीय अनुसंधान परिषद बैठक का शुभारंभ, 133 नई परियोजनाओं पर मंथन

समस्तीपुर, 27 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा में तीन दिवसीय अनुसंधान परिषद (Research Council) की बैठक का शुभारंभ शुक्रवार को हुआ। इस बैठक में एक्सपर्ट्स के तौर पर नवसारी एवं जूनागढ़ विश्वविद्यालय, गुजरात के पूर्व कुलपति डॉ ए आर पाठक, कृषि विश्वविद्यालय कोटा, राजस्थान के पूर्व कुलपति डॉ ए के व्यास, कृषि विश्वविद्यालय जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व कुलपति डॉ जे पी शर्मा तथा एनआरसी लीची के निदेशक डॉ विकास दास शामिल हुए।

अंतरराष्ट्रीय स्तर के शोध की जरूरत: कुलपति डॉ पी एस पांडेय

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुलपति डॉ पी एस पांडेय ने कहा कि विश्वविद्यालय ने अनुसंधान के क्षेत्र में तेज प्रगति की है, लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय स्तर से भी बेहतर बनने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि देश को विकसित बनाने में वैज्ञानिकों की अहम भूमिका है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकसित भारत का संकल्प पूरे देश का संकल्प है।

उन्होंने कृषि की भविष्य की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि जलवायु अनुकूल कृषि के क्षेत्र में विश्वविद्यालय ने राज्य सरकार के सहयोग से उल्लेखनीय कार्य किया है और चौथे कृषि रोड मैप के तहत बिहार के कृषि विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

डॉ पांडेय ने कहा कि बिहार में छोटे जोत के किसान अधिक हैं, इसलिए ऐसे कम लागत वाले, स्वचालित कृषि यंत्रों के विकास की जरूरत है। साथ ही उन्होंने डिजिटल एग्रीकल्चर, रोबोटिक्स, प्रिसीजन फार्मिंग और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) पर शोध को समय की मांग बताया। उन्होंने यह भी कहा कि छोटे और मध्यम जोत वाले किसानों के लिए नए समेकित कृषि मॉडल विकसित किए जाने चाहिए।

नेचुरल फार्मिंग में देश को दिशा दे रहा है विश्वविद्यालय: डॉ ए आर पाठक

पूर्व कुलपति डॉ ए आर पाठक ने कहा कि डॉ पांडेय के नेतृत्व में पूसा विश्वविद्यालय पूरे देश को नई राह दिखा रहा है। उन्होंने बताया कि नेचुरल फार्मिंग पर कोर्स और अनुसंधान शुरू करने वाला यह देश का पहला विश्वविद्यालय है। अब सरकार ने सभी कृषि विश्वविद्यालयों में नेचुरल फार्मिंग से जुड़े कोर्स शुरू करने का निर्णय ले लिया है।

उन्होंने विश्वविद्यालय की जलवायु अनुकूल अनुसंधान परियोजना की सराहना करते हुए बताया कि राज्य के 13 जिलों में 75 हजार से अधिक किसानों की आय में 20 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई है। साथ ही 30 प्रतिशत से अधिक पानी की बचत और 35 प्रतिशत कम उर्वरक उपयोग संभव हुआ है। उन्होंने कहा कि यह परियोजना भविष्य में देश और दुनिया के लिए मार्गदर्शक बनेगी।

घटती जोत, पानी की कमी और किसानों का मोहभंग बड़ी चुनौती: डॉ जे पी शर्मा

पूर्व कुलपति डॉ जे पी शर्मा ने कहा कि भारत में कृषि जोत का औसत आकार एक हेक्टेयर से भी कम हो गया है। पानी की उपलब्धता तेजी से घट रही है और किसान खेती से विमुख हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को इन तीनों समस्याओं पर केंद्रित अनुसंधान करना चाहिए।

उन्होंने खेती को व्यवसाय का स्वरूप देने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इससे युवा वर्ग कृषि की ओर आकर्षित होगा और उन्हें यह एहसास होगा कि खेती सम्मानजनक और लाभकारी पेशा है।

कृषि, प्रकृति और मानव स्वास्थ्य एक-दूसरे से जुड़े: डॉ ए के व्यास

पूर्व कुलपति डॉ ए के व्यास ने कहा कि मनुष्य और प्रकृति का स्वास्थ्य सीधे कृषि से जुड़ा हुआ है। यदि मिट्टी का स्वास्थ्य खराब होगा तो फसलों और अंततः मानव स्वास्थ्य पर भी इसका असर पड़ेगा। उन्होंने वैज्ञानिकों से ऐसे अनुसंधान विकसित करने का आह्वान किया जो प्रकृति, मिट्टी, फसलों और मानव स्वास्थ्य—सभी के लिए लाभकारी हों।

एनआरसी लीची के निदेशक डॉ विकास दास ने कहा कि भारत में अब अन्न की कमी नहीं है, बल्कि पोषण सुरक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि लोगों को संपूर्ण और संतुलित पोषण मिल सके।

निदेशक अनुसंधान डॉ ए के सिंह ने बताया कि इस बैठक में 133 नई अनुसंधान परियोजनाओं पर गहन मंथन किया जाएगा। इसके साथ ही विश्वविद्यालय में चल रही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं समेत अन्य शोध कार्यों की भी समीक्षा की जाएगी। अनुसंधान परिषद की यह बैठक 29 दिसंबर तक चलेगी।

कार्यक्रम का मंच संचालन डॉ प्रियंका त्रिपाठी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन सह निदेशक अनुसंधान डॉ एस के ठाकुर ने किया। इस अवसर पर निदेशक शिक्षा डॉ उमाकांत बेहरा, डीन पीजीसीए डॉ मयंक राय, डीन बेसिक साइंस डॉ अमरेश चंद्रा, डीन फिशरीज डॉ पी पी श्रीवास्तव, निदेशक कृषि व्यवसाय एवं ग्रामीण प्रबंधन डॉ रामदत्त सहित बड़ी संख्या में शिक्षक, वैज्ञानिक और विश्वविद्यालय के पदाधिकारी उपस्थित रहे।

पूसा कृषि विश्वविद्यालय की यह अनुसंधान परिषद बैठक भविष्य की कृषि चुनौतियों—जलवायु परिवर्तन, डिजिटल एग्रीकल्चर, छोटे किसानों की समस्याएं और पोषण सुरक्षा—को ध्यान में रखते हुए कृषि अनुसंधान को नई दिशा देने वाली साबित होने की उम्मीद है।

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