नई दिल्ली, 26 दिसंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): सरसों की फसल में इस समय एक गंभीर रोग सफेद रोली (White Rust) किसानों के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है। बदलते मौसम, बढ़ती नमी और ठंडे तापमान के कारण यह रोग कई सरसों उत्पादक क्षेत्रों में तेजी से फैल रहा है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, समय पर पहचान और सही प्रबंधन न होने पर यह रोग फसल की उपज और गुणवत्ता दोनों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
सफेद रोली रोग के शुरुआती लक्षण सबसे पहले पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देते हैं, जहां सफेद रंग के छोटे-छोटे उभरे हुए धब्बे बनते हैं। रोग बढ़ने पर यह तना, शाखाओं और फलियों तक फैल जाता है। प्रभावित पौधों में तना और पुष्पक्रम फूलकर मांसल हो जाते हैं, जिससे फूलों का सामान्य विकास रुक जाता है। इस स्थिति में पौधों में आंशिक या पूर्ण नपुंसकता आ जाती है और बीज नहीं बन पाते।
फूल वाली टहनियों का टेढ़ा-मेढ़ा हो जाना और फलियों का न बनना इस रोग का सबसे नुकसानदेह प्रभाव माना जाता है। कई बार पौधे हरे-भरे दिखते हैं, लेकिन अंदरूनी क्षति के कारण किसान को अपेक्षित उत्पादन नहीं मिल पाता।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, अधिक नमी, लगातार ओस, ठंडा मौसम और घनी बुवाई इस रोग को बढ़ावा देती हैं। ऐसे में खेत में जल निकास की सही व्यवस्था और संतुलित पोषण बेहद जरूरी है।
रोग के नियंत्रण के लिए विशेषज्ञों ने रिडोमिल एम-जेड 72 WP या मैन्कोजेब का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करने की सलाह दी है। बेहतर परिणाम के लिए 15–20 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव किए जाने चाहिए और छिड़काव रोग के शुरुआती चरण में ही करना सबसे प्रभावी रहता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सतर्कता और वैज्ञानिक प्रबंधन अपनाकर सफेद रोली जैसे रोग से सरसों की फसल को बचाया जा सकता है और किसानों को संभावित नुकसान से राहत मिल सकती है।
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