मुंबई, 18 अगस्त (कृषि भूमि डेस्क):
केरल (Kerala) के कोल्लम (Kollam) ज़िले स्थित नींदाकरा फिशिंग हार्बर को कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में ‘हरिता सागरम’ परियोजना के तहत दूसरा स्थान प्रदान किया गया है। यह सम्मान बंदरगाह और उससे जुड़े मत्स्य समुदाय के सतत विकास की दिशा में किए गए प्रयासों को मान्यता देता है।
‘हरिता सागरम’ परियोजना का मुख्य उद्देश्य मछुआरा परिवारों को केवल समुद्री उत्पादों पर निर्भर न रखते हुए उन्हें कृषि से भी जोड़ना है। इसके तहत बंदरगाह परिसर और आसपास के गांवों में वैज्ञानिक पद्धति से सब्जियों और मसालों की खेती की जा रही है। केले, बीन्स, अदरक, हल्दी और पालक जैसी फसलें यहां मॉडल फार्म पर उगाई जा रही हैं। इससे मत्स्य समुदाय को अतिरिक्त आय का स्रोत मिल रहा है और पोषण सुरक्षा भी सुनिश्चित हो रही है।
स्थानीय प्रशासन का कहना है कि इस पहल ने किसानों और मछुआरों दोनों के बीच एक “समन्वित कृषि-मछली मॉडल” तैयार किया है। अब मछुआरे केवल मछली पकड़ने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सब्जियों और मसालों की खेती में भी सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं। इससे उनकी आय दोगुनी होने की संभावना जताई जा रही है।
नींदाकरा बंदरगाह प्रबंधन समिति के एक अधिकारी ने कहा, “यह पुरस्कार हमारे लिए गर्व का विषय है। हमने मछुआरों को प्रशिक्षण देकर उन्हें खेती की वैज्ञानिक तकनीक सिखाई। अब वे खुद सब्जियों का उत्पादन कर स्थानीय बाजार में बेच रहे हैं।”
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह की परियोजनाएँ ग्रामीण और तटीय क्षेत्रों में आजीविका विविधीकरण (Livelihood Diversification) की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती हैं। खासकर ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन और समुद्री संसाधनों पर दबाव लगातार बढ़ रहा है, खेती और मछली पालन का संयुक्त मॉडल टिकाऊ विकास का बेहतर विकल्प बन सकता है।
कुलमिलाकर, नींदाकरा की यह उपलब्धि अन्य बंदरगाहों और तटीय समुदायों के लिए प्रेरणा है। यह पहल दिखाती है कि अगर सही प्रशिक्षण, संसाधन और बाज़ार तक पहुंच उपलब्ध हो तो समुद्र और ज़मीन दोनों का उपयोग कर बेहतर आर्थिक और सामाजिक विकास हासिल किया जा सकता है।
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