नई दिल्ली, 13 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (Trade Deal) को लेकर सरकार ने किसानों की चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए स्पष्ट संकेत दिया है कि किसी भी स्थिति में किसान, मछुआरे और दुग्ध उत्पादकों के हितों से समझौता नहीं किया जाएगा। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि भारत इस समझौते में शामिल सभी प्रावधानों को किसान-हित और राष्ट्रीय कृषि-आर्थिक सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए ही आगे बढ़ाएगा।
गोयल ने स्पष्ट किया कि भारत वैश्विक व्यापार साझेदारियों का विस्तार जरूर करना चाहता है, लेकिन यह विस्तार कृषि-हितों की कीमत पर नहीं होगा। उन्होंने कहा कि किसानों की आजीविका, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और डेयरी सेक्टर की स्थिरता भारत की प्राथमिकता है—और किसी भी व्यापारिक समझौते में इन क्षेत्रों को कमजोर करने वाली शर्तें स्वीकार नहीं की जाएंगी।
क्यों महत्वपूर्ण है यह बयान?
अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों का सीधा असर कृषि उत्पादों—जैसे गेहूं, चावल, दाल, डेयरी उत्पाद, मछली और अन्य खाद्य वस्तुओं—के निर्यात-आयात, बाजार पहुंच, और कस्टम ड्यूटी पर पड़ता है।
यदि आयात शुल्क कम किए जाते हैं, तो विदेशी उत्पाद सस्ते होकर भारतीय बाजार में बड़े पैमाने पर आ सकते हैं, जिससे घरेलू किसानों और पशुपालकों पर दबाव बढ़ सकता है।
इसी संदर्भ में किसानों और विशेषज्ञों के बीच आशंका थी कि अमेरिका के साथ होने वाला नया समझौता भारत के दुग्ध क्षेत्र, मत्स्य पालन और कृषि उत्पादन से प्रतिस्पर्धा पैदा कर सकता है। इसलिए गोयल का यह वक्तव्य किसानों और इन सेक्टरों के लिए राहतभरा माना जा रहा है।
कृषि-क्षेत्र पर संभावित प्रभाव
प्रस्तावित भारत–अमेरिका व्यापार समझौते के कृषि-क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ सकते हैं, क्योंकि इसके कई प्रावधान सीधे डेयरी, मत्स्य पालन, अनाज और दालों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों से जुड़े हैं। यदि आयात शुल्क में कमी या बाजार पहुंच बढ़ाने जैसी शर्तें शामिल होती हैं, तो भारतीय डेयरी उद्योग को अमेरिकी बड़े और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी दूध एवं दूध-उत्पाद कंपनियों से कड़ी चुनौती मिल सकती है।
इसी तरह, मछली और समुद्री उत्पादों के व्यापार में भी निर्यात–आयात संतुलन बदल सकता है, जिससे घरेलू मत्स्य उद्योग पर दबाव बढ़ने की आशंका है। कृषि वस्तुओं—जैसे गेहूं, मकई, सोयाबीन और दालों—के आयात-निर्यात नियमों में बदलाव भारतीय किसानों के बाज़ार भाव और उत्पादन रणनीति को प्रभावित कर सकते हैं।
हालांकि, समझौता सकारात्मक अवसर भी दे सकता है, विशेषकर यदि भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाजार में आसान पहुंच मिलती है, तो किसानों के लिए नए निर्यात-मार्ग खुल सकते हैं। लेकिन सरकार का स्पष्ट रुख है कि जब तक इन सभी संवेदनशील क्षेत्रों के हित पूरी तरह सुरक्षित नहीं होते, तब तक किसी भी रियायत या नई व्यापारिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
सरकार की रणनीति: किसान-हित सर्वोपरि
पीयूष गोयल के अनुसार, भारत किसी भी देश के साथ व्यापार बढ़ाने को तैयार है, लेकिन यह तभी संभव है जब घरेलू किसानों की आय सुरक्षित रहे, स्थानीय उद्योग को नुकसान न पहुंचे, डेयरी और मत्स्य क्षेत्र वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए तैयार हों और व्यापारिक लाभ दोनों पक्षों के लिए संतुलित हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत अपने किसानों की अनदेखी करके कोई भी समझौता साइन नहीं करेगा।
कृषि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सही तरीके से बातचीत होने पर भारत इस समझौते से निर्यात बाजारों का विस्तार, उच्च गुणवत्ता मानक अपनाने, और घरेलू कृषि मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने जैसे लाभ भी प्राप्त कर सकता है। लेकिन यह तभी संभव है जब समझौते में सुरक्षा-प्रावधान और संवेदनशील सेक्टरों की रक्षा शामिल हो।
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