मुंबई, 17 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): वैश्विक क्रूड ऑयल बाजार में इस हफ्ते कीमतों पर जोरदार दबाव देखने को मिल रहा है। अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड वायदा 58 सेंट या 0.9% गिरकर 63.81 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया, जबकि अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड वायदा 59 सेंट या 1.0% टूटकर 59.50 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा है।
कीमतों में आई इस गिरावट के पीछे कई वैश्विक और भू-राजनीतिक कारण जिम्मेदार हैं, जिनका सीधा असर भारत जैसे आयात-निर्भर देशों तक भी पहुंच रहा है।
क्यों गिर रहे हैं कच्चे तेल के दाम?स
1. रूस के नोवोरोस्सिय्स्क बंदरगाह पर गतिविधि बहाल: ब्लैक सी में स्थित रूस का प्रमुख तेल निर्यात बंदरगाह Novorossiysk पिछले सप्ताह यूक्रेनी हमले के कारण आंशिक रूप से ठप हो गया था। इससे वैश्विक सप्लाई में अस्थायी रुकावट आई थी, क्योंकि यह बंदरगाह प्रतिदिन लगभग 2.2 मिलियन बैरल तेल की शिपमेंट में योगदान देता है। लेकिन रविवार से लोडिंग दोबारा शुरू होने के संकेत मिलते ही बाजार में सप्लाई बढ़ने की उम्मीद जगी और कीमतों में तेजी से गिरावट आई।
2. बाजार में ओवरसप्लाई का खतरा: OPEC+ और गैर-OPEC उत्पादक देशों द्वारा उत्पादन बढ़ाए जाने से कच्चे तेल के बाजार में अधिशेष की स्थिति बन गई है। OPEC+ की हालिया रिपोर्ट बताती है कि 2026 तक वैश्विक मांग और सप्लाई लगभग बराबर हो सकती है, जिससे कीमतों में तेज वृद्धि की गुंजाइश सीमित हो रही है।
3. डॉलर की मजबूती और ब्याज दरों पर अनिश्चितता: अमेरिका में ब्याज दरों को ऊँचा बनाए रखने के संकेतों ने डॉलर इंडेक्स को मजबूत किया है।
मजबूत डॉलर से कमोडिटी की मांग घटती है, क्योंकि अन्य मुद्राओं में इसे खरीदना महंगा पड़ता है। इसका सीधा असर क्रूड की अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर पड़ा है।
4. मांग में कमजोरी के संकेत: चीन और एशिया की रिफाइनरियों में सुस्ती के अलावा यूरोप और अमेरिका में फैक्ट्रियों की धीमी गतिविधियों की वजह से तेल की खपत में गिरावट, जिसने कीमतों पर और दबाव बनाया है।
भारत पर असर: क्या मिल सकती है राहत?
1. पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती की संभावना: भारत अपने कच्चे तेल का लगभग 85% आयात करता है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट से घरेलू रिटेल फ्यूल प्राइस पर सकारात्मक असर पड़ सकता है। यदि यह गिरावट कुछ हफ्तों तक बनी रहती है, तो OMCs पेट्रोल-डीजल के दामों में राहत दे सकती हैं।
2. चालू खाता घाटा (CAD) में सुधार: सस्ता क्रूड भारत के आयात बिल को कम करता है, जिससे चालू खाता घाटे में सुधार होता है और रुपए पर स्थिरता मिलती है।
3. महंगाई में कमी की उम्मीद: तेल की कीमतें कम होने से ट्रांसपोर्ट लागत घटती है। यह पैदावार, खाद्य वस्तुओं, मैन्युफैक्चरिंग और ई-कॉमर्स तक — हर सेक्टर को राहत देता है।
4. एयरलाइन और इंडस्ट्री सेक्टर को बड़ा लाभ: एयरलाइन कंपनियों का बड़ा खर्च एविएशन टरबाइन फ्यूल (ATF) होता है। ATF सस्ता होने से एयरलाइन सेक्टर की लागत कम होगी। पेंट, प्लास्टिक, केमिकल और एडहेसिव इंडस्ट्री को भी मार्जिन में बढ़त मिल सकती है।
क्रूड ऑयल कहाँ जा सकता है?
1. सप्लाई बहाली जारी रही तो कीमतें और टूट सकती हैं। यदि रूस और मध्य-पूर्व से सप्लाई बाधित नहीं होती है, तो Brent 60 डॉलर प्रति बैरल के आसपास स्थिर होने की संभावना है।
2. भू-राजनीतिक तनाव कीमतें पलट सकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध, ईरान-इज़रायल तनाव और होर्मुज जलडमरूमध्य की स्थिति – इनमें से किसी भी मोर्चे पर बड़ा तनाव बढ़ने पर तेल की कीमतें अचानक उछाल ले सकती हैं।
3. फेडरल रिजर्व के निर्णय होंगे निर्णायक। ब्याज दरों में कटौती मतलब तेल की कीमतों में तेजी और दरें ऊँची रहने पर कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है।
4. रिफाइनरी रुकावटें अल्पकालिक उतार-चढ़ाव ला सकती हैं। रूस, एशिया, अफ्रीका और यूरोप में रिफाइनरी यूनिटों की दिक्कतें डीज़ल-गैसोलीन सप्लाई पर असर डाल रही हैं। इससे रिफाइनरी मार्जिन बढ़ा है, लेकिन यह क्रूड की कीमतों को स्थायी सहारा नहीं दे पा रहा।
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