नई दिल्ली, 11 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): पंजाब के मानसा ज़िले के बुढलाडा उपमंडल के बिरोके कलां गाँव में रहने वाले 38 वर्षीय स्नातक किसान सुखजीत सिंह ने यह साबित कर दिया है कि पराली (stubble) जलाना समस्या नहीं, समाधान बन सकता है।
2013 से, उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर पराली प्रबंधन, मल्चिंग और प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के तरीकों को अपनाया। आज उनकी आठ एकड़ ज़मीन न केवल एक टिकाऊ कृषि मॉडल (Sustainable Farming Model) बन चुकी है, बल्कि मिट्टी की सेहत भी हर साल बेहतर हो रही है।
पराली से शुरुआत, टिकाऊ खेती तक का सफर
पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र सुखजीत सिंह ने बताया कि यह बदलाव एक व्यक्तिगत झटके के बाद शुरू हुआ। 2012 में उन्होंने देखा कि पराली जलाने से खेतों के उपयोगी कीट मर गए। उसी समय, उनके भाई के नवजात बेटे को जन्मजात बीमारी का पता चला।
उन्होंने कहा, “डॉक्टरों ने बताया कि यह मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी और अत्यधिक रासायनिक प्रयोग का परिणाम है। उसी दिन मैंने ठान लिया कि रसायनों से दूरी रखूंगा और पराली नहीं जलाऊंगा।”
मिट्टी में पराली मिलाई, उपज और लाभ बढ़ाया
सुखजीत ने खेतों में सुपर सीडर मशीन का उपयोग शुरू किया, जिससे पराली को जलाने की बजाय मिट्टी में मिला दिया जाता है। इससे मिट्टी में जैविक पदार्थ (organic matter) और नमी बनी रहती है।
वह हर दो साल में मिट्टी की जांच करवाते हैं। उन्होंने कहा – “हर जांच में मिट्टी की सेहत बेहतर दिखती है। पिछले दस सालों में मिट्टी की जैविक संरचना सुधरी है और उत्पादकता में वृद्धि हुई है।”
इस पद्धति से खेती की लागत में 40–50 प्रतिशत तक की बचत हुई है। जहाँ पारंपरिक गेहूँ की खेती में खर्च लगभग ₹10,000 प्रति एकड़ आता है,
वहीं सुखजीत का खर्च सिर्फ ₹4,000 प्रति एकड़ है।
धान जैसी फसलों में भी उनकी लागत ₹15–20 हज़ार से घटकर ₹8–10 हज़ार प्रति एकड़ रह गई है। इससे उनकी आय में 20–30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
प्राकृतिक खेती और फसल विविधीकरण
सुखजीत सिंह अब केवल गेहूँ-धान नहीं, बल्कि बाजरा, दालें, हल्दी और गन्ना भी उगाते हैं। पराली की मल्चिंग ने इन फसलों की पैदावार और गुणवत्ता दोनों में सुधार किया है – खासकर हल्दी में उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
उन्होंने कहा, “पराली प्रबंधन से मुझे प्राकृतिक खेती और फिर फसल विविधीकरण की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।”
खेती से उद्यमिता तक — अब ‘ब्रांड सुखजीत’
अब सुखजीत सिंह ने अपने उत्पादों को ब्रांड वैल्यू में बदल दिया है। वे अपने घरेलू स्टोर और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से बाजरे का आटा, बिस्कुट, हल्दी पाउडर, मसाले, गुड़ और तेल बेचते हैं। उनके स्वदेशी बीज और जैविक उत्पाद अब कनाडा, अमेरिका, और न्यूज़ीलैंड तक निर्यात किए जा रहे हैं।
उनका “Natural Drops आजीविका स्वयं सहायता समूह” 14 से 27 नवंबर तक दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित 44वें भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले (IITF) में पंजाब का प्रतिनिधित्व करेगा — जहाँ वे अपने प्रसंस्कृत जैविक बाजरा उत्पाद प्रदर्शित करेंगे।
मानसा की उपायुक्त नवजोत कौर ने कहा, “सुखजीत सिंह न केवल एक प्रगतिशील किसान हैं, बल्कि जैविक खेती में सफल उद्यमी भी हैं। उन्होंने पराली प्रबंधन और सुपर सीडर जैसी तकनीकों से एक आदर्श प्रस्तुत किया है।” ज़िला प्रशासन ने उन्हें ‘प्रगतिशील किसान सम्मान’ से भी सम्मानित किया है।आज वे अपने क्षेत्र में अन्य किसानों को टिकाऊ कृषि के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
मिट्टी की कहानी में नई शुरुआत
सुखजीत सिंह की कहानी इस बात का प्रमाण है कि यदि किसान इच्छाशक्ति, विज्ञान और परंपरा का संतुलन बना ले, तो पराली जैसी समस्या को भी मिट्टी की उर्वरता और आजीविका का साधन बनाया जा सकता है।
उनकी बातों में आत्मविश्वास झलकता है – “हर साल मिट्टी की जाँच बताती है कि यह ज़िंदा है, सांस ले रही है – और यही असली सफलता है।”
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