Palm Oil Price 2025: पाम ऑयल की कीमतों में गिरावट जारी, पर शॉर्ट-कवरिंग और सोयापाम स्प्रेड से मिली सीमित राहत

मुंबई, 04 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): वैश्विक खाद्य तेल बाजार में 2025 की दूसरी छमाही से लगातार दबाव देखने को मिल रहा है, क्योंकि आपूर्ति की अधिकता, कमजोर वैश्विक मांग और प्रतिस्पर्धी तेलों की बढ़ती उपलब्धता ने मिलकर बाजार की दिशा बदल दी है। विशेष रूप से Crude Palm Oil (CPO) की कीमतों पर इसका सबसे अधिक असर पड़ा है, जो मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे प्रमुख उत्पादक देशों के लिए चिंता का विषय बन गया है।

वित्तीय वर्ष 2025 के शुरुआती महीनों में जहां पाम ऑयल की कीमतें स्थिर बनी हुई थीं, वहीं अगस्त के बाद से इसमें तेज़ गिरावट दर्ज की गई। इस गिरावट का कारण केवल घरेलू उत्पादन में वृद्धि ही नहीं, बल्कि ग्लोबल आर्थिक सुस्ती, चीन और भारत जैसे बड़े आयातक देशों की धीमी खरीदारी, तथा कच्चे तेल के दामों में उतार-चढ़ाव भी रहे हैं।

अक्टूबर के अंत तक CPO की कीमतें लगभग चार महीने के निचले स्तर (4,150 रिंग्गित प्रति टन) पर आ चुकी हैं, जिससे बाजार में निवेशकों का भरोसा भी कमजोर पड़ा है।

मलेशियाई बाजारों में ट्रेडर्स का कहना है कि यह गिरावट केवल अस्थायी नहीं बल्कि एक “संरचनात्मक दबाव (structural pressure)” का संकेत है, जो अगले कुछ महीनों तक कायम रह सकता है। वहीं विश्लेषकों का मानना है कि यदि मौजूदा रुझान जारी रहा, तो पाम ऑयल की वैश्विक कीमतें वर्ष के अंत तक केवल सीमित दायरे में ही कारोबार कर पाएंगी।

नीचे दिया गया चार्ट दर्शाता है कि अगस्त 2025 से नवंबर 2025 तक पाम ऑयल की कीमतों में कैसी गिरावट आई और किस तरह यह बाजार चार महीने के भीतर अपने उच्चतम स्तर से फिसलकर नीचे आया।

इस चार्ट से साफ है कि अगस्त से नवंबर के बीच पाम ऑयल की कीमतों में लगभग ₹570 रिंग्गित प्रति टन की गिरावट आई।

प्रमुख कारण: कीमतों पर दबाव क्यों?
1.  मलेशिया में स्टॉक बढ़ना: मलेशिया, जो विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पाम ऑयल उत्पादक देश है, वहां उत्पादन उम्मीद से कहीं अधिक रहा है। अच्छी फसल और अनुकूल मौसम के कारण पाम ऑयल की आपूर्ति में तेज़ी आई है, लेकिन मांग उसी गति से नहीं बढ़ी। इस असंतुलन ने बाजार में अतिरिक्त स्टॉक जमा कर दिया, जिससे कीमतों पर स्पष्ट दबाव पड़ा है।

मलेशियन पाम ऑयल बोर्ड (MPOB) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2025 तक देश में कुल इन्वेंट्री पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 9–10% अधिक है। इतनी बड़ी मात्रा में उपलब्ध स्टॉक ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में कीमतों की रिकवरी को सीमित कर दिया है। इसके साथ ही, कुछ निर्यात गंतव्यों से कम मांग के कारण मलेशिया में रिफाइनर्स और उत्पादकों पर अतिरिक्त दबाव बना हुआ है।

2. चीन में मांग कमजोर: चीन, जो पाम ऑयल का सबसे बड़ा वैश्विक आयातक है, वहां हाल के महीनों में मांग में उल्लेखनीय कमी आई है। आर्थिक मंदी, औद्योगिक गतिविधियों में सुस्ती और उपभोक्ता खर्च में गिरावट के चलते देश का कुल तेल आयात प्रभावित हुआ है। चीन के खाद्य तेल बाजार में घरेलू तेल बीज उत्पादन (जैसे सोयाबीन और रेपसीड) में सुधार और इन्वेंट्री लेवल में वृद्धि ने भी विदेशी पाम ऑयल की मांग को कमजोर किया है। इसके अलावा, लॉजिस्टिक बाधाओं और बढ़ती परिवहन लागत ने चीन के खरीदारों को सावधानीपूर्वक खरीदारी करने के लिए मजबूर किया है।

3. सोयाबीन ऑयल की प्रतिस्पर्धा: पाम ऑयल की गिरावट का एक बड़ा कारण सोयाबीन ऑयल की मजबूत प्रतिस्पर्धा भी है। हाल के महीनों में सोयाबीन ऑयल के दाम लगातार घटे हैं, जिससे यह पाम ऑयल की तुलना में अधिक आकर्षक विकल्प बन गया है। रिफाइनर्स और खाद्य उद्योग के खरीदार अब लागत घटाने के लिए सोयाबीन ऑयल को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह प्रतिस्थापन प्रभाव पाम ऑयल की खपत को सीमित कर रहा है। इसके अलावा, अमेरिका और ब्राजील से बढ़े हुए सोयाबीन उत्पादन ने वैश्विक बाजार में तेल बीजों की आपूर्ति बढ़ा दी है, जिससे पाम ऑयल की मांग पर और नकारात्मक असर पड़ा है।

4. अंतरराष्ट्रीय व्यापार की अनिश्चितता: वैश्विक भू-राजनीतिक माहौल भी पाम ऑयल की कीमतों को प्रभावित कर रहा है। अमेरिका–चीन व्यापार समझौते (Trade Deal) पर हस्ताक्षर में देरी से बाजार में अस्थिरता बनी हुई है। निवेशक और व्यापारी इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि कब यह डील औपचारिक रूप से लागू होगी और इसका वास्तविक असर मांग पर कितना होगा।

दूसरी ओर, यूरोपीय बाजारों में सुस्ती और सस्टेनेबिलिटी मानकों को लेकर सख्ती ने भी निर्यात को प्रभावित किया है। यूरोपियन यूनियन द्वारा बायोफ्यूल सेक्टर में पाम ऑयल के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में बढ़ते कदमों ने दीर्घकालिक रूप से इसकी मांग के लिए एक और चुनौती खड़ी की है।

इस तरह, उच्च स्टॉक लेवल, कमजोर ग्लोबल डिमांड, प्रतिस्पर्धी तेलों की बढ़त और अंतरराष्ट्रीय अनिश्चितताओं ने मिलकर पाम ऑयल बाजार पर दबाव डाला है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि जब तक इन कारकों में सुधार नहीं होता, तब तक पाम ऑयल की कीमतों में उल्लेखनीय रिकवरी की संभावना सीमित रहेगी।

शॉर्ट-कवरिंग से मिली हल्की रिकवरी
हाल ही में बाजार में शॉर्ट-कवरिंग देखने को मिली है। लगातार गिरावट के बाद जब ट्रेडर्स ने अपनी शॉर्ट पोजीशन कवर की, तो कीमतों में थोड़ी रिकवरी आई। मार्केट एनालिस्ट्स का कहना है कि “4,150–4,200 रिंग्गित के स्तर पर क्रूड पाम ऑयल को सपोर्ट मिला है।” हालांकि, यह रिकवरी फिलहाल तकनीकी (technical) मानी जा रही है, क्योंकि डिमांड साइड से अभी भी कोई बड़ा सुधार नहीं दिख रहा।

सोयापाम स्प्रेड बढ़ने से मिला सीमित सपोर्ट
सोयाबीन ऑयल और पाम ऑयल के बीच का मूल्य अंतर (Soya–Palm Spread) इस समय बढ़ा हुआ है। इसका अर्थ यह है कि सोयाबीन ऑयल, पाम ऑयल से अधिक महंगा है, जिससे कुछ उपभोक्ता पाम ऑयल की ओर लौटे हैं। इसने पाम ऑयल के भावों को सीमित सपोर्ट (Limited Support) दिया है और बड़े फॉल को रोकने में मदद की है। विश्लेषक मानते हैं कि अगर यह स्प्रेड कुछ और बढ़ता है, तो भारत और चीन जैसे बड़े बाजारों में इंपोर्ट दोबारा बढ़ सकते हैं।

भारत का रुख: दाम स्थिर होने का इंतजार
भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा पाम ऑयल आयातक देश है, फिलहाल कीमतों में स्थिरता का इंतजार कर रहा है। हाल की गिरावट के चलते कई डीलर्स ने खरीदारी को कुछ समय के लिए टाल दिया है।

वर्तमान में पाम ऑयल 30 डॉलर के डिस्काउंट पर बिक रहा है, जिससे भारत के लिए खरीदारी आकर्षक बन सकती है। त्योहारी मांग (नवंबर–दिसंबर) के कारण दिसंबर में आयात बढ़ने की संभावना है। यदि कीमतें स्थिर रहती हैं, तो दिसंबर के अंत तक भारत का पाम ऑयल आयात 8 से 10 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

एक्सपर्ट ओपिनियन
CIMB Futures का कहना है कि शॉर्ट-कवरिंग के चलते पाम ऑयल में सीमित रिकवरी संभव है, लेकिन ओवरस्टॉकिंग और कमजोर मांग के कारण बाजार का रुख अभी भी बियरिश बना हुआ है। Refinitiv Agriculture के अनुसार, यदि दिसंबर में चीन की खरीदारी में तेजी आती है, तो मलेशियन पाम ऑयल की कीमतें 4,300 से 4,400 रिंग्गित प्रति टन तक रिकवर कर सकती हैं। वहीं, Reuters के विश्लेषण के मुताबिक, सोयापाम स्प्रेड बढ़ने से पाम ऑयल फिर से प्रतिस्पर्धी हो गया है और भारत को मौजूदा स्तरों पर अपनी खरीद बढ़ाने पर विचार करना चाहिए।

आगे का अनुमान (Outlook till Dec 2025)

अवधिसंभावित मूल्य (रिंग्गित/टन)ट्रेंड
नवंबर मध्य4,150 – 4,250स्थिर से हल्की तेजी
दिसंबर अंत4,200 – 4,500सीमित रिकवरी संभव
जनवरी 20264,300 – 4,600त्योहारी एक्सपोर्ट से सपोर्ट संभव

प्रमुख इंडिकेटर:
– 
मलेशिया में स्टॉक लेवल: 2.2–2.3 मिलियन टन
– चीन इंपोर्ट रिकवरी: दिसंबर में 5–7% संभावित वृद्धि
– भारत की खरीद: स्थिरता आने पर बढ़ सकती है
– डॉलर इंडेक्स: अगर डॉलर कमजोर होता है, तो कमोडिटी कीमतों को सपोर्ट मिल सकता है

मलेशिया में फिलहाल पाम ऑयल का स्टॉक स्तर 2.2 से 2.3 मिलियन टन के बीच है, जिससे बाजार पर आपूर्ति का दबाव बना हुआ है। चीन में दिसंबर के दौरान आयात में 5 से 7 प्रतिशत तक की संभावित वृद्धि की उम्मीद की जा रही है, जो वैश्विक मांग को कुछ राहत दे सकती है। भारत में खरीदारी कीमतों में स्थिरता आने के बाद बढ़ने की संभावना है, जबकि यदि डॉलर इंडेक्स कमजोर होता है तो इससे अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी बाजारों, विशेष रूप से पाम ऑयल की कीमतों को अतिरिक्त सपोर्ट मिल सकता है।

आगे क्या?
2025 के अंतिम तिमाही में पाम ऑयल बाजार दबाव में है। हालांकि, शॉर्ट-कवरिंग और सोयापाम स्प्रेड के विस्तार ने इसे गिरावट से थोड़ा सहारा दिया है। निकट भविष्य में पाम ऑयल की कीमतें 4,200–4,500 रिंग्गित प्रति टन के बीच रह सकती हैं।
अगर दिसंबर में चीन और भारत से मांग बढ़ती है, तो 4,600 रिंग्गित तक का उछाल संभव है।

कुल मिलाकर, बाजार अभी भी “संतुलन की खोज” में है, न तो तेजी का माहौल और न ही बड़ी गिरावट की संभावना।

===

हमारे लेटेस्ट अपडेट्स और खास जानकारियों के लिए अभी जुड़ें — बस इस लिंक पर क्लिक करें:
https://whatsapp.com/channel/0029Vb0T9JQ29759LPXk1C45

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें

ताज़ा न्यूज़

विज्ञापन

विशेष न्यूज़

Stay with us!

Subscribe to our newsletter and get notification to stay update.

राज्यों की सूची