नई दिल्ली, 30 जुलाई (कृषि भूमि डेस्क):
भारत में तूर दाल (अरहर) की कीमतों में इस समय एक मिश्रित प्रवृत्ति देखी जा रही है। एक ओर त्योहारों के मौसम में मांग अपेक्षाकृत धीमी रही, वहीं दूसरी ओर अफ्रीकी देशों से आयात में तेजी के कारण भविष्य में कीमतों में उतार-चढ़ाव की आशंका बनी हुई है।
घरेलू बाजार में मांग सुस्त, मिलों की क्रशिंग घटी
त्योहारी सीजन में आमतौर पर दालों की मांग बढ़ती है, लेकिन इस बार तूर की खपत उम्मीद से कम रही है। कई दाल मिलों ने क्रशिंग 10–20% तक घटा दी है, क्योंकि उपभोक्ताओं और थोक खरीदारों की ओर से उठाव कम रहा है। इसका असर बाजार भाव पर भी पड़ा है, जो स्थिर या सीमित बढ़त के साथ दिखाई दिए।
आपूर्ति बढ़ी, आयात से बाजार पर दबाव
2024–25 सीज़न में घरेलू तूर उत्पादन 3.5–4 लाख टन तक रहा, जो संतोषजनक माना जा रहा है। वहीं अफ्रीका और म्यांमार से आयात ने बाजार में आपूर्ति को और मजबूत किया है। जनवरी से नवंबर 2024 के बीच भारत ने 1.14 मिलियन टन तूर दाल का आयात किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 42% अधिक है।
इस अतिरिक्त आपूर्ति के चलते बाजार भाव पर दबाव बना रहा और कई प्रमुख मंडियों में दाम MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से नीचे भी दर्ज किए गए। सरकार द्वारा खरीद जारी रहने के बावजूद, जून 2025 तक कई जगहों पर 10–12% कम भाव देखे गए।
अफ्रीकी आपूर्ति बनी भविष्य के लिए जोखिम
मोज़ाम्बिक, तंजानिया और मलावी जैसे देशों से तूर दाल के आयात में इज़ाफा जरूर हुआ है, लेकिन अब वहां की सरकारों ने न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) जैसे कदम उठाए हैं। मोज़ाम्बिक ने तूर के लिए $850–900 प्रति टन MEP तय किया है, जिससे भारतीय आयातकों पर लागत बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है।
इसके अलावा, अफ्रीकी निर्यातक भारत में कमी को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं — जिससे पिछली खेपों में $100 प्रति टन तक का उछाल देखा गया था। अगर ये रुझान जारी रहे, तो आने वाले महीनों में थोक और खुदरा स्तर पर भी कीमतें बढ़ सकती हैं।
केंद्र सरकार की रणनीति: MSP पर खरीद और आयात नीति
सरकार ने तूर, उरद और मसूर जैसी प्रमुख दालों के नि:शुल्क आयात नीति को मार्च 2025 तक के लिए बढ़ा दिया है, ताकि आपूर्ति निरंतर बनी रहे। साथ ही, Price Support Scheme (PSS) के तहत अब तक 0.59 मिलियन टन से अधिक तूर दाल की खरीद की जा चुकी है।
वाणिज्य मंत्रालय अब न्यूनतम आयात मूल्य (Minimum Import Price – MIP) लागू करने पर भी विचार कर रहा है, ताकि अफ्रीकी निर्यातकों द्वारा अनियंत्रित मूल्यवृद्धि को रोका जा सके।
अस्थिरता के बीच सावधानी जरूरी
फिलहाल तूर दाल का बाजार मांग और आपूर्ति के दोतरफा दबाव में है। एक ओर त्योहारी मांग में ठहराव, दूसरी ओर विदेशी आयात का बहाव — इन दोनों के बीच बाजार संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है।
जहां उपभोक्ताओं को फिलहाल MSP के आसपास या उससे नीचे दाम मिल सकते हैं, वहीं दीर्घकालिक दृष्टि से अफ्रीकी आपूर्ति पर निर्भरता बढ़ना मूल्य अस्थिरता का कारण बन सकता है।
सरकार को चाहिए कि वह स्थानीय उत्पादन को और मज़बूती दे और निर्यातकों के साथ दीर्घकालीन अनुबंधों पर ध्यान केंद्रित करे। व्यापारी वर्ग के लिए सलाह है कि वे बड़े स्टॉक्स बनाने से पहले विदेशी बाज़ार की चाल पर सतर्क नजर बनाए रखें।
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