नई दिल्ली, 19अगस्त (कृषि भूमि ब्यूरो):
भारत सरकार ने वैश्विक व्यापार संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक अहम निर्णय लेते हुए कपास (Cotton) पर लगाए गए आयात शुल्क को पूरी तरह समाप्त कर दिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब अमेरिका ने हाल ही में भारतीय वस्त्रों और परिधान उत्पादों पर आयात शुल्क (Tariffs) बढ़ा दिया है, जिससे भारत के कपड़ा उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है।
क्या है मामला?
पिछले कुछ महीनों में अमेरिका ने कई विकासशील देशों, विशेषकर भारत और वियतनाम, से आने वाले वस्त्रों पर टैरिफ दरें बढ़ा दी थीं। अमेरिका द्वारा यह कदम घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के नाम पर उठाया गया, लेकिन इसका असर भारतीय टेक्सटाइल निर्यातकों पर पड़ा, जिनका अमेरिका भारत के सबसे बड़े बाजारों में से एक है।
जवाब में, भारत सरकार ने कॉटन पर लगने वाले 5% से 10% तक के आयात शुल्क को हटा दिया है। इस निर्णय से घरेलू कपड़ा उद्योग को वैश्विक बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने में मदद मिलेगी और कच्चे माल की लागत कम होगी।
सरकार का पक्ष
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा: “यह कदम भारतीय कपड़ा उद्योग को वैश्विक स्तर पर मजबूत बनाने की दिशा में उठाया गया है। आयात शुल्क हटाने से भारतीय निर्माताओं को सस्ते दरों पर कॉटन मिल सकेगा, जिससे उनकी उत्पादन लागत घटेगी और वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करने में सहूलियत होगी।”
उद्योग की प्रतिक्रिया
कपड़ा उद्योग संगठनों ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है। कॉटन टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (TEXPROCIL) ने कहा: “यह बहुत ही समयोचित फैसला है। अमेरिकी टैरिफ में वृद्धि से हमें नुकसान हो रहा था। अब आयातित कॉटन सस्ता होने से हम बेहतर कीमतों पर उत्पाद तैयार कर सकेंगे।”
कुछ उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि इससे बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से मुकाबला आसान होगा, जो पहले से ही कम लागत पर परिधान बना रहे हैं।
हालांकि यह निर्णय राहत भरा माना जा रहा है, लेकिन घरेलू कपास उत्पादकों ने चिंता जताई है कि इससे भारतीय किसानों को नुकसान हो सकता है। यदि आयातित कपास सस्ते दामों पर बाज़ार में आता है, तो स्थानीय उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा में कठिनाई हो सकती है।
इस पर मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि स्थानीय किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए अलग से समर्थन योजनाएँ चलाई जाएँगी, जिससे वे बाजार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित न हों।
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