कर्नाटक, 7 नवंबर (कृषि भूमि ब्यूरो): कर्नाटक के उत्तर भाग में गन्ना किसानों द्वारा जारी आंदोलन ने सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर रोष दिखाना शुरू कर दिया है। विशेष रूप से Belagavi, Bagalkot, Haveri और Vijayapura जिलों में गन्ना किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तथा समय पर भुगतान की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं।

आंदोलन की शुरुआत और मुख्य कारण

उत्तर कर्नाटक के गन्ना बेल्ट में किसान लंबे समय से कई समस्याओं से जूझ रहे थे — जैसे बढ़ती उत्पादन लागत, गन्ना मिलों द्वारा देरी से खरीद एवं भुगतान, तथा गन्ने की कीमत न बढ़ने का दबाव। किसानों का कहना है कि एक एकड़ गन्ना खेती में बीज, उर्वरक, श्रम, सिंचाई एवं ट्रांसपोर्ट के खर्च बढ़कर ₹ 60,000 से ₹ 80,000 तक पहुँच चुके हैं।
किसान शोषित महसूस कर रहे हैं क्योंकि मिलें गन्ने से बनने वाले बाय-प्रोडक्ट्स (मोलैसिस, प्रेसमड, इथेनॉल) से भारी मुनाफा कमा रही हैं, जबकि गन्ना किसानों को उनकी मेहनत के अनुपात में लाभ नहीं मिल रहा।

किसानों की मांगे

* किसानों की प्रमुख मांग है कि गन्ने की कीमत ₹ 3,500 प्रति टन या उससे अधिक तय की जाए।
* मिलों से समय-सीमा में भुगतान और गन्ने की कटाई-परिवहन खर्च को मिलों द्वारा वहन करने जैसे मॉडल अपनाने की मांग भी उठ रही है।
* किसानों का तर्क है कि पूरे देश में अन्य राज्यों जैसे आदि में बेहतर दरें मिल रही हैं, जबकि कर्नाटक की गुणवत्ता की गन्ना उत्पादन के बावजूद दरें कम हैं।

आंदोलन का स्वरूप एवं असर

आंदोलन ने बंद एवं सड़क अवरोध के रूप में तब रूप लिया, जब किसानों ने मुख्य हाईवे जैसे Nippani–Mudhol State Highway पर गाड़ियाँ रोक दीं, ट्रैक्टर-एक्स्केवेटर से मार्ग अवरुद्ध किया।
कई कस्बों में भाग-ठाका बंद रहा — जैसे मुसलगी, जम्बोटी, gokak — जिसका असर यहां के दैनिक जीवन व व्यापार पर पड़ा।
मिलों का संचालन प्रभावित हुआ, गिरावट आई गन्ना खरीद में, प्रदर्शन ने बड़ी तेज गति पकड़ी।

सरकार की प्रतिक्रिया

मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा है कि गन्ने की न्यूनतम कीमत तय करना केंद्र सरकार का काम है, लेकिन राज्य सरकार किसानों की स्थिति को गंभीरता से ले रही है। उन्होंने किसानों व मिलों के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई है।
सरकार ने किसानों से सड़क अवरोध न करने का आग्रह किया है और कहा है कि आज तक समाधान निकालने का प्रयास जारी है।
हालांकि किसानों ने सरकार को चेतावनी दी है कि यदि शुक्रवार शाम तक उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो आंदोलन को और तेज करने की तैयारी है।

चुनौती और आगे क्या हो सकता है?

यह आंदोलन सिर्फ एक मांग तक सीमित नहीं है; यह किसानों की आजीविका, कृषि-उद्योग संबंध और राज्य व केंद्र की नीतियों पर प्रश्नचिह्न है।

अगर सरकार उनकी मांगें स्वीकार कर लेती है — विशेषकर मूल्य वृद्धि व भुगतान में सुधार — तो गन्ना सत्र सामान्य रूप से शुरू हो सकेगा।
यदि नहीं, तो आंदोलन और व्यापक रूप ले सकता है, जिससे न सिर्फ आर्थिक बल्कि सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं — जैसे राज्य-स्तरीय विस्तार, अन्य फसलों में किसानों का आंदोलन, राजनीतिक चर्चाएँ।
मिलों एवं उद्योग को भी जिम्मेदारी लेने की जरूरत है: समय पर भुगतान, पारदर्शिता, गन्ने को उचित तरीके से क्रश करना आदि।
केंद्र सरकार की भूमिका भी अहम है क्योंकि FRP (Fair & Remunerative Price) तय करना, निर्यात पाबन्दियाँ, इथेनॉल नीति आदि उसके नियंत्रण में हैं।

उत्तर कर्नाटक में आज चल रहा गन्ना किसानों का आंदोलन सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं है। यह उन चुनौतियों को उजागर कर रहा है जिनका सामना भारत के किसानों को करना पड़ रहा है — उत्पादन लागत में वृद्धि, मूल्य निर्धारण में असमर्थता, उद्योग-राज्य-किसान के बीच असंतुलन। यदि समय रहते संतुलित और न्यायसंगत समाधान नहीं निकला, तो यह आंदोलन गन्ना उद्योग के लिए एक चेतावनी बन सकता है। राज्य व केंद्र को मिलकर किसानों की उम्मीदों, उनकी मेहनत और उनकी सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा पर विचार करना होगा।

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