मुंबई, 14 नवंबर (कृषि भूमि डेस्क): बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम (Bihar Election Results) ने एक बार फिर देश की राजनीति को चौंका दिया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 243 सीटों वाली विधानसभा में 200 से अधिक सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया है। यह जीत न केवल निर्णायक है, बल्कि एनडीए (NDA) के लिए एक ऐतिहासिक जनादेश है, जिसने महागठबंधन (Mahagathbandhan) के तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के नेतृत्व वाली चुनौती को ध्वस्त कर दिया। इस जीत के साथ ही, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने लगातार दसवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी वापसी सुनिश्चित की है। हालाँकि इसकी औपचारिक घोषणा अभी बाकी है। यह बंपर जीत कई महत्वपूर्ण राजनीतिक समीकरणों (Political Equations) और प्रभावी चुनावी रणनीति का परिणाम है।

एनडीए की जीत केवल दो बड़े नेताओं (नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री मोदी) के तालमेल पर आधारित नहीं थी, बल्कि यह पाँच प्रमुख कारकों का परिणाम थी जिन्होंने मतदाताओं को अपनी और करने में सफलता हासिल की।
1. महिला और लाभार्थी वर्ग का समर्थन:
एनडीए की जीत में सबसे बड़ा योगदान राज्य और केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का रहा। नीतीश कुमार की महिला-केंद्रित योजनाओं, खासकर मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की लाभार्थी योजनाओं (जैसे मुफ्त राशन, पक्के मकान, शौचालय) ने एक मजबूत वोट बैंक तैयार किया। महिलाओं और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) के बीच बना यह मजबूत ‘एमई फैक्टर’ (ME Factor) सत्ता विरोधी लहर (Anti-Incumbency) को काटने में सबसे कारगर साबित हुआ।
2. ‘जंगल राज’ का प्रभावी डर:
एनडीए ने अपने प्रचार में लालू-राबड़ी के 15 साल के शासनकाल से जुड़े कानून व्यवस्था की जंगल राज (Jungle Raj) वाली छवि को प्रभावी ढंग से फिर से उभारा। एनडीए ने खुद को सुरक्षा और स्थिरता के एकमात्र संरक्षक के रूप में प्रस्तुत किया। यह रणनीति उन मतदाताओं को लंबवत करने में सफल रही जो अराजक अतीत की वापसी नहीं चाहते थे और विकास के एजेंडे को प्राथमिकता देते थे।
3. प्रधानमंत्री मोदी की अजेय लोकप्रियता:
स्थानीय स्तर पर सत्ता विरोधी लहर के बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता ने एनडीए के प्रदर्शन को अभूतपूर्व बल दिया। मतदाताओं ने राज्य के मुद्दों और राष्ट्रीय नेतृत्व के बीच स्पष्ट अंतर करते हुए, मोदी की गारंटी (Modi Ki Guarantee) के पक्ष में मतदान किया। उनकी रैलियों और लक्षित कल्याण संदेशों ने अस्थिर मतदाताओं (Floating Voters) को एनडीए के पक्ष में लाने का काम किया।
4. गठबंधन की परिपक्वता और जातीय गणित:
इस बार एनडीए गठबंधन में भाजपा (BJP), जदयू (JDU) और चिराग पासवान (Chirag Paswan) की लोजपा (रामविलास) (LJP (RV)) ने बेहतरीन तालमेल दिखाया। सीट बंटवारे का सटीक फॉर्मूला (जैसे भाजपा और जदयू का 101-101 सीटों पर लड़ना) और दलित व पिछड़ा वर्ग (Dalit and Backward Classes) के वोट बैंक को एकजुट करने में चिराग पासवान की सफलता ने एनडीए के वोट शेयर को सीटों में तब्दील करने में मदद की।
5.महागठबंधन की विफलता:
दूसरी ओर, महागठबंधन (Mahagathbandhan) को कई कारणों से करारी हार का सामना करना पड़ा। तेजस्वी यादव अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव समीकरण से बाहर निकलने में विफल रहे। उनका अभियान देर से शुरू हुआ और कार्ययोजना की कमी के कारण संदेह पैदा हुआ। कांग्रेस जैसे सहयोगी दलों का खराब प्रदर्शन ( 6 सीट ) और गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे पर आंतरिक मतभेद ने विपक्षी एकता की छवि को कमजोर कर दिया, जिससे एनडीए को अपनी एकजुटता का लाभ मिला।
बिहार के लिए आगे की राह:
बिहार चुनाव परिणाम ने एक बार फिर राजनीतिक स्थिरता और विकास की निरंतरता के पक्ष में जनादेश दिया है। एनडीए के पास अब राज्य के बुनियादी ढांचे (Infrastructure) को और मजबूत करने, निवेश (Investment) को आकर्षित करने और रोजगार सृजन के अपने वादों को पूरा करने की बड़ी जिम्मेदारी है। बिहार की जनता ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रदर्शन और गठबंधन की एकजुटता ही सफल राजनीति की कुंजी है।
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