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रिपोर्ट: बिचित्र शर्मा, धर्मशाला

हिमाचल प्रदेश का कांगड़ा जिला आज प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में एक मिसाल बनकर उभर रहा है। रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों से बचने और मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए यहां के किसान अब तेजी से प्राकृतिक खेती अपना रहे हैं।

अतमा परियोजना के परियोजना निदेशक डॉ. राज कुमार के अनुसार, वर्ष 2024-25 में 51.89 लाख रुपये व्यय कर 358 किसानों से 836 क्विंटल गेहूं और 13 किसानों से 53 क्विंटल हल्दी खरीदी गई। सरकार ने प्राकृतिक गेहूं का समर्थन मूल्य 60 रुपये प्रति किलो और मक्की का 40 रुपये प्रति किलो तय किया है। बाजार में इन उत्पादों की मांग इतनी अधिक रही कि प्राकृतिक आटा कुछ ही दिनों में बिक गया।

प्राकृतिक खेती में गोबर, गोमूत्र, जीवामृत, बीजामृत और नीम जैसे जैविक उपायों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि हुई है।किसान अब कम लागत में अधिक उत्पादन ले रहे हैं और उपभोक्ता शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक अन्न पा रहे हैं।

त्रैम्बलू और मट गाँव के किसान बताते हैं कि सरकार की ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ से उन्हें प्रशिक्षण, तकनीकी मार्गदर्शन और विपणन सहयोग मिल रहा है। इससे उनकी आमदनी बढ़ी है और भूमि की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।

उपायुक्त हेम राज बैरवा ने कहा कि आने वाले समय में कांगड़ा जिला न केवल हिमाचल बल्कि देशभर के लिए प्राकृतिक खेती का मॉडल जिला बनेगा। सरकार अब लाइफसाइकिल अप्रोच के तहत गाय-भैंस पालन, हल्दी और मक्की उत्पादन को जोड़कर किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रही है।

कांगड़ा की यह पहल साबित कर रही है कि जब किसान और सरकार साथ आएँ, तो मिट्टी, अन्न और जीवन, तीनों स्वस्थ हो सकते हैं।

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