नई दिल्ली, 11 अगस्त (कृषि भूमि ब्यूरो):
भारत (India) के विभिन्न हिस्सों में आज का मौसम (Weather) कृषि (Agriculture) कार्यों को प्रभावित करने वाला साबित हो सकता है। अगस्त का यह समय खरीफ फसलों की बढ़वार, खरपतवार नियंत्रण, रोग प्रबंधन और कुछ क्षेत्रों में रोपण कार्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसे में किसानों को मौसम की सटीक जानकारी होना आवश्यक है।
आज उत्तर भारत के कई इलाकों में आंशिक रूप से बादल छाए रहेंगे, वहीं पूर्वी और मध्य भारत में गरज-चमक के साथ बारिश की संभावना बनी हुई है। मौसम विभाग के अनुसार उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में हल्की से मध्यम वर्षा दर्ज की जा सकती है, जबकि झारखंड, बंगाल और ओडिशा के कुछ क्षेत्रों में भारी वर्षा की चेतावनी दी गई है।
दक्षिण भारत (South India) में, विशेषकर केरल (Keral) और कर्नाटक (Karnataka) के तटीय भागों में मॉनसून (Monsoon) सक्रिय बना हुआ है, जिससे लगातार वर्षा हो रही है। यह धान (Rice) और अन्य खरीफ फसलों के लिए फायदेमंद है, लेकिन अत्यधिक नमी से फसल रोगों की आशंका भी बढ़ सकती है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी गरज-चमक के साथ बौछारें पड़ने की संभावना है।
पश्चिम भारत में महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ हिस्सों में आज मौसम शुष्क रहने की संभावना है। इन क्षेत्रों में अगले दो दिनों तक बारिश में कमी देखी जा सकती है, जिससे खेतों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ सकती है। वहीं राजस्थान के कुछ पूर्वी जिलों में हल्की बारिश हो सकती है।
हिमालयी क्षेत्रों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में मौसम अपेक्षाकृत शांत रहेगा, हालांकि कुछ स्थानों पर हल्की बारिश के साथ धुंध छाई रह सकती है।
कृषि के दृष्टिकोण से आज का दिन मिश्रित प्रभाव वाला रहेगा। जहां पूर्वी और दक्षिणी भारत में वर्षा नमी प्रदान करेगी, वहीं पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत के किसानों को सिंचाई की योजना पर ध्यान देना होगा। इसके अतिरिक्त, उच्च आर्द्रता के कारण पत्तों पर फफूंदी, ब्लास्ट या झुलसा रोग की आशंका वाले क्षेत्रों में किसान अपने खेतों की नियमित निगरानी रखें।
कुलमिलाकर, आज का मौसम खरीफ सीजन की अधिकांश फसलों के लिए अनुकूल है, लेकिन क्षेत्रीय असमानता के कारण प्रत्येक किसान को स्थानीय पूर्वानुमान पर आधारित कार्य योजना अपनानी चाहिए। आने वाले दिनों में मानसून की सक्रियता और अधिक बढ़ने की उम्मीद है, जिससे सिंचाई पर निर्भरता कम हो सकती है।
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